3.81 लाख छात्रों का भुगतान किया, 595 छात्रों पर चुप्पी
25 जनवरी 2023 को हुए इस भुगतान में विवि के अनुसार 3,82,409 छात्रों ने आवेदन किया था, जबकि परिणाम 3,81,814 छात्रों का जारी किया गया। दिलचस्प बात यह है कि बीईसीआईएल ने 3,81,219 छात्रों के लिए भुगतान का दावा किया, लेकिन 595 छात्रों के संबंध में विश्वविद्यालय ने कोई स्थिति स्पष्ट नहीं की। यह सारी जानकारी उप निदेशक लेखा परीक्षा आशीष वाष्र्णेय द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में सामने आई है, जो कुलपति को भेज दी गई है।
अधिकारियों पर खर्च किए क्रीड़ा निधि के पैसे
क्रीड़ा (खेल) निधि का गलत इस्तेमाल करते हुए विश्वविद्यालय ने 11.70 लाख रुपये छात्र-छात्राओं पर खर्च करने के बजाय अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए ब्रांडेड ट्रैक सूट खरीदने में खर्च कर दिए। गांधी स्पोर्ट्स से 2,925 रुपये प्रति ट्रैक सूट की दर से कुल 400 ट्रैक सूट खरीदे गए और फरवरी 2023 में चेक से भुगतान किया गया। जबकि नियमानुसार, यह राशि सिर्फ छात्रों पर खर्च होनी चाहिए थी।
बिना पद सृजन के 1.61 करोड़ का भुगतान
नई दिल्ली की सिटी एलर्ट सिक्योरिटी नामक आउटसोर्सिंग एजेंसी को 1.61 करोड़ रुपये का भुगतान भी नियमों को ताक पर रखकर किया गया। विश्वविद्यालय ने इसके लिए न तो कोई पद सृजित कराया और न ही सक्षम स्तर से मंजूरी ली। इतना ही नहीं, जिन सुरक्षाकर्मियों को काम पर रखा गया था, उनके पीएफ खाते तक नहीं खोले गए। नियमानुसार, पीएफ अंशदान न देने पर या तो यह राशि वसूल की जानी चाहिए थी या भुगतान में समायोजित किया जाना चाहिए था।
टुकड़ों में भुगतान करके टेंट हाउस को फायदा
विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में अग्रवाल टेंट हाउस को बिना टेंडर आमंत्रण के 9,83,351 रुपये का भुगतान कर दिया गया। ऑडिट टीम ने इसे भी आपत्तिजनक व नियमों के विरुद्ध बताया है, क्योंकि नियमानुसार एक लाख रुपये से अधिक के किसी भी कार्य के लिए खुली निविदा आवश्यक होती है। यह भुगतान जानबूझकर कार्य को खंडों में दिखाकर किया गया।
अंकरियों को दोहरी तनख्वाह
अंकतालिका की जांच के नाम पर भी विश्वविद्यालय ने 174 नियमित कर्मचारियों को 31.82 लाख रुपये का अतिरिक्त भुगतान किया, जबकि ये सभी कर्मचारी पहले से नियमित वेतन पा रहे थे। यह भी वित्तीय नियमों का उल्लंघन है।
एक साल चली ऑडिट, नहीं दिया गया संतोषजनक जवाब
लेखा परीक्षा विभाग की यह ऑडिट करीब एक वर्ष तक चली, लेकिन विवि प्रशासन द्वारा अधिकतर आपत्तियों पर संतोषजनक जवाब या कोई ठोस साक्ष्य नहीं दिए गए। इससे विश्वविद्यालय की वित्तीय कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।