हमारे परिवार में से कहीं छोटे-छोटे बच्चे भी स्कूल में पढऩे जाते हैं। ङ्क्षचता लगी रहती है स्कूल की हालत को देखते हुए। कहीं कोई हादसा ना हो जाए बच्चे घर पर आते हैं तब जाकर जान में जान आई है।
लीलाधर मीणा, अभिभावक घोड़ीगांव यह विद्यालय लगभग 1985 के तकरीबन बना था। उसके बाद से ही यहां इन कमरों की मरम्मत का कार्य कम ही हुआ है। कक्षा 12वीं तक कर्मों होने के बाद से या नए कमरों का निर्माण नहीं हुआ है। पुराने कमरों में ही विद्यालय संचालित हो रहा है। बारिश के दौरान पूरा भवन टपकता रहता है। जितने भी क्षतिग्रस्त भवन हैं, इनको जमींदोज करके नए भवनों का निर्माण होना चाहिए।
भूपेंद्र मीणा, समाजसेवी अपने कलेजे के टुकड़ों को स्कूल में भेजने में भी अब डर लगने लगा है। पाल पोसकर इतने बड़े किए हैं।अगर अगर कोई हादसा हो गया तो हम तो जीते जी ही मर जाएंगे। मां अपने बच्चों को 9 महीने तक अपने कोख में रखती है उसे खोने का दर्द वही जानती है।
काली बाई मीणा, घोड़ीगांव यहां सभी कमरे जर्जर अवस्था में है विद्यार्थियों को बैठाने के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है। गांव में भी कोई ऐसा भवन नहीं है जहां पर बच्चों को बिठाया जा सके। तीन-तीन पीरियड के अंतराल में बच्चों को बिठाया जा सकता है। केवल एक ही कमरा है जहां स्टाफ की बैठता है। अधिकारियों ने सख्त मना कर दिया है की बच्चों को इन कमरों में ना बिठाया जाए।
सुमनलता, प्रधानाचार्य रामावि घोड़ीगांव