Kargil Vijay Diwas: करगिल की जंग आज भी जेहन में जिंदा
इस युद्ध में विशेष योगदान देने वालों में जिले के जवान भी शामिल हैं। एक जवान कारगिल युद्ध की तैयारी के दौरान शहीद हो गया तो दूसरा युद्ध में घायल जवानों का इलाज करते रहा। एक जवान ऐसा भी है, जिसे कारगिल युद्ध होने के तीन दिन पहले ही जानकारी मिल गई थी कि कुछ गड़बड़ होने वाला है। इसकी जानकारी ग्रामीणों ने उसे दी। उन्होंने कारगिल युद्ध से जुड़ी आंखों देखी बताई। बालोद निवासी थानेश्वर प्रसाद साहू भी कारगिल युद्ध के गवाह हैं। उन्होंने बताया कि 1995 में फौज में भर्ती हुए, उसे मेडिकल विभाग में जिम्मेदारी मिली थी। जब
कारगिल युद्ध हुआ तो कई जवान घायल होते थे। घायलों को स्वास्थ्य कैंप लाने पर उनका इलाज करते थे। जवानों को ठीक लगता था तो फिर युद्ध के लिए चले जाते थे। आज भी कारगिल युद्ध का मंजर याद आता है। कई बार स्ट्रेचर भी कम पड़ते थे तो तत्काल जुगाड़ से स्ट्रेचर बनाते थे।
बेटे की शहादत पर आज भी गर्व
दुर्वाशा लाल निषाद पिता मुनिलाल निषाद (23) की 1993 में आर्मी में नौकरी लगी। पिता मुनिलाल ने बताया कि बेटा आर्मी में गया तो बोला पापा देश के लिए जीना और देश के लिए मरना है। बेटे के देश प्रेम के इस जज्बे को देखकर आंखें भर आई थीं। आज भी बेटे पर गर्व है, जो देश की रक्षा की खातिर शहीद हो गया।
शहीदों को याद कर आखें हो जाती हैं नम
आज भी इस दिन को याद कर सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। कारगिल विजय में शहीद जांबाजों को याद कर आंखें भी नम हो जाती हैं। ऑपरेशन विजय के तहत देश के वीर सपूतों ने अपनी जान की बाजी लगाकर पाकिस्तान पर विजय हासिल की।
ड्यूटी करते वक्त शहीद हो गए थे दुर्वाशा निषाद
गुंडरदेही ब्लॉक के देवरी (ख) के वीर जवान 23 वर्षीय दुर्वाशा निषाद कारगिल युद्ध की तैयारी करते वक्त शहीद हो गए थे। किशन लाल साहू (26) भी कारगिल में शहीद हो गए। युद्ध के लिए सामग्री एकत्र करते हुए शहीद
परिजनों के मुताबिक कारगिल युद्ध के 6 दिन पहले वह
रक्षाबंधन की छुट्टी पर गांव आया था। उस समय कहा था कि पाकिस्तान व भारत के बीच युद्ध होना संभावित है। तैयारी करनी है। छुट्टी से वापस जाने के बाद 4 सितंबर 1998 को कारगिल युद्ध के लिए सामान इकट्ठा करते वक्त स्वास्थ्य बिगड़ गया और कारगिल में शहीद हो गए।
देखा तो पाकिस्तान की फौज खड़ी थी
कारगिल युद्ध का आंखों देखा हाल कोई अच्छे तरीके से जान सकता है तो वे बालोद जिले के ग्राम झीकाटोला निवासी एवं थल सेना में हवलदार कोमल सिंह मंडावी। उन्होंने बताया कि वे 1986 में सेना में शामिल हुए। कारगिल युद्ध की घटना आज भी ताजा है। वे वहां बिहार रेजीमेंट में हवलदार थे। हमारा कैंपस दाह नामक गांव में था। यहां के चरवाहे मवेशी ले जाते थे, लेकिन मवेशी वापस नहीं आते थे। इसकी जानकारी चरवाहे ने सेना के जवानों को दी। सेना के सीईओ ने गश्त टीम भेजी। टीम जानकारी लेने गई तो देखा कि पाकिस्तान की फौज सामने थी। फिर पाकिस्तानी फौज ने हमला शुरू कर दिया। भारतीय फौज ने भी मुंह तोड़ जवाब दिया और 60 दिन चले युद्ध में भारत को जीत मिली।