सामने आईं चौंकाने वाली गड़बड़ियां
जिला अस्पताल में चल रही जांच में पाया गया कि, मनकक्ष में दवाओं का कोई भी सही रेकॉर्ड नहीं था। जांच टीम ने जब स्टॉक रजिस्टर की मांग की तो पाया कि, उसमें दर्ज प्रविष्टियां सही नहीं थीं और रेकॉर्ड भी सत्यापित नहीं किया गया था। यहां तक कि, दवाओं का वितरण भी ओपीडी पर्चों के अनुसार सही तरीके से नहीं हुआ। न ही किसी मरीज को कितनी दवाएं दी गईं, इसका कोई सही विवरण था। जांच के दौरान ये भी खुलासा हुआ ,कि जब जांच टीम ने इंडेन बुक की मांग की तो ये भी पुरानी तारीख में भरने का प्रयास किया गया, जिसे टीम ने जब्त कर नोडल अधिकारी को सौंप दिया।6 अधिकारियों की संयुक्त जांच, लेकिन निष्कर्ष नहीं
ये जांच, जो 3 दिनों तक चली, उसमें शामिल थे- अपर कलेक्टर, एसडीएम, डिप्टी कलेक्टर, सीएमएचओ, तहसीलदार और औषधि निरीक्षक। हालांकि, जांच के अंत में ये साफ नहीं हो सका कि, 8400 दवाओं की चोरी में दोषी कौन है? सभी अधिकारी अब केवल यही कह रहे हैं कि, कोतवाली में एफआईआर दर्ज की जा चुकी है और पुलिस इस मामले की जांच करेगी।बिना मांग पत्र के 37500 गोलियों का वितरण, क्या हो रही है मनमानी?
जांच में ये भी सामने आया कि, अस्पताल के सेंट्रल स्टोर ने बिना किसी मांग पत्र के मनकक्ष को 37,500 गोलियां भेज दीं। इसके बावजूद मनकक्ष प्रभारी ने इस वितरण को सत्यापित नहीं किया। इससे ये सवाल उठता है कि, किस तरह से सरकारी दवाओं का वितरण हो रहा है और क्या इसमें अधिकारियों की मिलीभगत तो नहीं है ?जांच में अन्य गड़बड़ियों का भी खुलासा
-साइकोटिक दवाओं का वितरण, बैच नंबर, समाप्ति तिथि और रोगी के मोबाइल नंबर का कोई रिकॉर्ड नहीं था।-स्टॉक रजिस्टर में दवाओं के बैच नंबर और निर्माण तिथि का सही उल्लेख नहीं किया गया था।
-स्टॉक रजिस्टर और व्यय रजिस्टर की सत्यापन प्रक्रिया पूरी नहीं की गई थी।
-दवा वितरण पर्चियों पर पंजीकरण की मोहर, चिकित्सक का नाम और ओपीडी नंबर तक नहीं था।