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करगिल विजय दिवस पर विशेष शहीदों की वीरता की कहानी, उनकी वीरांगनाओं की जुबानी

अलवर पत्रिका. शनिवार को करगिल विजय दिवस की 26वीं वर्षगांठ है। यह दिन उन शहीदों को नमन करने का है, जिन्होंने इस युद्ध में अपना सब कुछ मातृभूमि की आन, बान और शान के लिए न्योछावर कर दिया। करगिल का युद्ध भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच वर्ष 1999 में हुआ था। राजस्थान पत्रिका ने इस युद्ध में शामिल हुए उन शहीदों की कहानियों को सहेजा है, जो अलवर, बहरोड़-कोटपूतली और खैरथल-तिजारा के हैं।

अलवरJul 26, 2025 / 11:56 am

Jyoti Sharma

पति ने युद्ध से जो पत्र लिखे थे, उन्हें मैं बेटी को पढ़कर सुनाती हूं, तो आंखें नम हो जाती हैं

अलवर पत्रिका. शनिवार को करगिल विजय दिवस की 26वीं वर्षगांठ है। यह दिन उन शहीदों को नमन करने का है, जिन्होंने इस युद्ध में अपना सब कुछ मातृभूमि की आन, बान और शान के लिए न्योछावर कर दिया। करगिल का युद्ध भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच वर्ष 1999 में हुआ था। राजस्थान पत्रिका ने इस युद्ध में शामिल हुए उन शहीदों की कहानियों को सहेजा है, जो अलवर, बहरोड़-कोटपूतली और खैरथल-तिजारा के हैं।

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आशा देवी ने आज भी सहेजे हुए हैं शहीद पति के पत्र और उनकी वर्दी

कर्णसिंह का जन्म एक जुलाई 1974 को मुंडावर के रायपुर में हुआ था। 28 अप्रेल 1994 को वे 17 जाट रेजिमेंट में भर्ती हुए और करगिल युद्ध में 6 जुलाई 1999 को वीर गति को प्राप्त हुए। इनकी स्मृति में तत्कालीन सीएम ने 23 नवंबर 2000 को रायपुर गांव में शहीद की प्रतिमा का अनावरण किया था। शहीद की पत्नी वीरांगना आशा देवी ने बताया कि मैंने आज तक शहीद पति के लिखे पत्र और सेना की वर्दी संभाल कर रखी है। पति शहीद हुए, जब मेरी उम्र 21 साल थी। पति की शहादत के ४ माह बाद बेटी जन्मी। वह पिता को देख भी नहीं पाई। पति ने युद्ध से जो पत्र लिखे थे, उन्हें मैं बेटी को पढ़कर सुनाती हूं, तो आंखें नम हो जाती हैं। पति की वर्दी और उनके मैडल मुझे उनकी मौजूदगी का अहसास कराते हैं।

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