रेसेप तैय्यिप एर्दोगन की तीन बड़ी चिंताएं
एर्दोगन ने इस जंग से जुड़ी तीन प्रमुख आशंकाएं साझा कीं – पहला, शरणार्थी संकट; दूसरा, ऊर्जा आपूर्ति पर खतरा; और तीसरा, जंग के परिणामस्वरूप अंतरराष्ट्रीय व्यापार में रुकावट। उन्होंने कहा कि तुर्की पहले ही सीरिया और अफगानिस्तान जैसे देशों से लाखों शरणार्थियों को शरण दे रहा है, और अब अगर ईरान या लेबनान जैसे देशों से भी पलायन होता है, तो यह तुर्की की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर भारी दबाव डालेगा।
युद्ध बढ़ने से तेल और गैस की आपूर्ति प्रभावित हो सकती है
उन्होंने चेताया कि फारस की खाड़ी में युद्ध बढ़ने से तेल और गैस की आपूर्ति प्रभावित हो सकती है। इससे इसकी वैश्विक ऊर्जा कीमतों में उछाल आ सकता है, जो तुर्की जैसे आयात-निर्भर देशों की अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर झटका होगा। तुर्की सरकार फिलहाल अपनी ऊर्जा रणनीति की समीक्षा कर रही है और रूस-कतर जैसे देशों से वैकल्पिक आपूर्ति चैनलों पर काम कर रही है।
शांति वार्ता की मांग और प्रस्ताव
एर्दोगन ने इस संघर्ष को रोकने के लिए बहुपक्षीय कूटनीति का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि अकेले सैन्य कार्रवाई से कभी स्थायी समाधान नहीं निकला है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र, ओआईसी (इस्लामिक सहयोग संगठन) और यूरोपीय संघ से अपील की कि वे एक साझा मंच बनाएं, जहां ईरान और इजराइल के बीच सीधी बातचीत की शुरुआत हो।
यदि दोनों पक्ष सहमत हों, तुर्की वार्ता की मेजबानी करने को तैयार
तुर्की ने यह भी प्रस्ताव दिया है कि यदि दोनों पक्ष सहमत हों, तो वह इस वार्ता की मेजबानी करने को तैयार है। अंकारा ने पहले भी सीरिया संघर्ष में कई अंतरराष्ट्रीय वार्ताओं की मेज़बानी की थी, जिससे उसकी कूटनीतिक स्थिति मजबूत हुई थी। अब वह इसी अनुभव का उपयोग इस संकट में मध्यस्थ की भूमिका निभाने में करना चाहता है।
मिसाइल क्षमता बढ़ाने की तैयारी, खुद को असुरक्षित नहीं छोड़ सकता।
तुर्की ने साफ कर दिया है कि वह शांति चाहता है, लेकिन खुद को असुरक्षित नहीं छोड़ सकता। एर्दोगन ने घोषणा की है कि तुर्की अपनी मध्यम दूरी की मिसाइल क्षमताओं को बढ़ाने की योजना बना रहा है। इसके तहत घरेलू रक्षा कंपनियों को उत्पादन तेज़ करने का निर्देश दिया गया है।
तुर्की यह कदम एक “रक्षात्मक नीति” के तहत उठा रहा
विशेषज्ञों का मानना है कि तुर्की यह कदम एक “रक्षात्मक नीति” के तहत उठा रहा है, ताकि किसी भी अप्रत्याशित हमले का तुरंत जवाब दिया जा सके। यह संदेश स्पष्ट है कि तुर्की युद्ध में नहीं कूदेगा, लेकिन उसके खिलाफ आक्रामक रुख अपनाने वालों को वह नजरअंदाज भी नहीं करेगा।
मुस्लिम देशों के मंच से इजराइल पर दबाव
तुर्की ने हाल ही में ओआईसी (इस्लामी सहयोग संगठन) की इमरजेंसी बैठक में भी कड़ा रुख अपनाया। इस बैठक में 57 मुस्लिम देशों ने भाग लिया और इजराइल से तुरंत युद्ध विराम करने के लिए मांग की। तुर्की ने यहां इजराइल की कार्रवाइयों को “इस्लामोफोबिक और अपमानजनक” बताया।
दुनिया ‘सांप्रदायिक और दमनकारी नीति’ के खिलाफ एकजुट हो: तुर्की
एर्दोगन ने कहा कि “जो देश इजराइल का समर्थन कर रहे हैं, वे इतिहास के गलत पक्ष पर खड़े हैं।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि तुर्की अब इस मुद्दे पर चुप नहीं रहेगा और दुनिया को इस ‘सांप्रदायिक और दमनकारी नीति’ के खिलाफ एकजुट होना होगा। इसके लिए वह कूटनीतिक और आर्थिक दबाव की रणनीति तैयार कर रहा है।
तुर्की खुद को ‘शांति निर्माता’ के रूप में स्थापित करना चाहता है
तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैय्यिप एर्दोगन के बयान पर मिडल ईस्ट एक्सपर्ट्स और कूटनीतिक हलकों में तीखी प्रतिक्रियाएं आई हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि तुर्की खुद को ‘शांति निर्माता’ के रूप में स्थापित करना चाहता है, जबकि कुछ इसे उसके रणनीतिक हितों से जुड़ा कदम बता रहे हैं।
इजराइल समर्थक गुटों की नजर में एर्दोगन का बयान एकतरफा
उधर इजराइल समर्थक गुटों ने एर्दोगन के बयान को एकतरफा करार दिया और कहा कि तुर्की खुद हमास और हिज़्बुल्ला जैसे गुटों के प्रति नरमी बरतता रहा है, इसलिए उसकी ‘शांति पहल’ पर सवाल उठना लाज़मी है।
क्या तुर्की वास्तव में मध्यस्थ की भूमिका निभाने को तैयार है ?
तुर्की की चिंताओं के बाद अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या वह वास्तव में ईरान-इजराइल संघर्ष में मध्यस्थ की भूमिका निभाने के लिए तैयार है ? आने वाले दिनों में तुर्की की ओर से संयुक्त राष्ट्र या इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के ज़रिए कोई प्रस्ताव पेश किया जा सकता है।
कुछ दिनों में अंकारा में कूटनीतिक हलचल तेज़ हो सकती है
इसके अलावा यह देखना होगा कि क्या जर्मनी, फ्रांस और रूस जैसे बड़े देश एर्दोगन की शांति वार्ता पहल को समर्थन देते हैं या इसे सिर्फ कूटनीतिक बयानबाज़ी मानते हैं। अगले कुछ दिनों में अंकारा में कूटनीतिक हलचल तेज़ हो सकती है।
अंदर की बात : देश में 2025 के अंत में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं
बहरहाल तुर्की की इस ‘शांति अपील’ का एक और पहलू यह है कि देश में 2025 के अंत में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं, और एर्दोगन अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि को मजबूत कर घरेलू राजनीति में बढ़त लेना चाहते हैं। युद्ध के खिलाफ कड़ा स्टैंड लेकर वे विपक्ष को नैतिक रूप से घेरना चाह रहे हैं। दूसरा पहलू यह है कि तुर्की के दक्षिणी हिस्सों में ईरानी और कुर्द उग्रवादियों की मौजूदगी पहले से चिंता का विषय रही है। अगर ईरान पूरी तरह युद्ध में उलझ जाता है, तो इन सीमावर्ती इलाकों में अस्थिरता और बढ़ सकती है, जिससे तुर्की को सुरक्षा के अतिरिक्त उपाय करने पड़ेंगे।