दुर्लभ खनिजों पर था विवाद, अब निर्यात दोबारा शुरू होगा
इस समझौते में सबसे अहम बिंदु है -चीन की ओर से दुर्लभ खनिजों का निर्यात फिर से शुरू करना। ये खनिज इलेक्ट्रिक गाड़ियाँ, स्मार्टफोन, रक्षा प्रणाली और सेमीकंडक्टर बनाने के लिए जरूरी होते हैं। चीन ने फरवरी में सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए इन खनिजों के निर्यात पर रोक लगाई थी।
अमेरिका की प्रतिक्रिया और नई शर्तें
प्रतिबंधों के जवाब में अमेरिका ने चीन से आने वाले सामान पर कई स्तरों पर टैरिफ (शुल्क) बढ़ा दिए थे। अब इस समझौते के तहत अमेरिका इन टैरिफ में कुछ राहत देगा। साथ ही, चीन भी अमेरिकी उत्पादों पर 10% शुल्क बरकरार रखेगा। व्हाइट हाउस ने कहा है कि यह समझौता मई में हुए जिनेवा फ्रेमवर्क का विस्तार है।
सौदे में छात्र वीज़ा जैसे मुद्दे भी शामिल
इस डील में शिक्षा क्षेत्र को लेकर भी एक शर्त रखी गई है। ट्रंप ने कहा कि चीन को अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे अपने छात्रों के लिए कुछ सुविधाएं मिलेंगी। यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पहले ट्रंप ने चीनी छात्रों के लिए वीज़ा नियमों को सख्त करने की बात कही थी।
व्यापार युद्ध की समयरेखा: फरवरी से जून तक तनाव
अमेरिका ने फरवरी 2025 में सभी चीनी आयातों पर 10% टैरिफ लगाया। बदले में चीन ने अमेरिकी तेल, कोयले और अन्य उत्पादों पर भारी शुल्क लगाया। मार्च में यह लड़ाई और तेज़ हो गई जब अमेरिका ने टैरिफ को 54% तक बढ़ा दिया और चीन ने भी जवाबी कदम उठाए।
फोन कॉल से बना रास्ता, लंदन में हुई निर्णायक बैठक
जून की शुरुआत में ट्रंप और शी जिनपिंग के बीच 90 मिनट की फोन कॉल हुई, जिसके बाद 9-10 जून को लंदन में उच्चस्तरीय बैठक हुई। 11 जून को ट्रंप ने घोषणा की कि “सौदा संपन्न हो गया है”।
विशेषज्ञों की चेतावनी: डील अभी अधूरी, जोखिम बाकी
हालांकि व्हाइट हाउस डील को लेकर उत्साहित है, लेकिन विश्लेषक अभी भी सतर्क हैं। वेल्थस्पायर एडवाइजर्स के ओलिवर पर्सचे ने कहा, “हमने अब तक इस सौदे का पूरा ब्योरा नहीं देखा है, इसलिए बाज़ार की प्रतिक्रिया सीमित है।” विश्व बैंक ने पहले ही 2025 के वैश्विक विकास दर को घटाकर 2.3% कर दिया है।
व्यापार जगत में मिली-जुली प्रतिक्रिया, बाज़ार अब भी सतर्क
ट्रंप द्वारा “सौदा पूरा हुआ” कहे जाने के बाद, वैश्विक व्यापार और तकनीकी हलकों में मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली। बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि घोषणा सकारात्मक संकेत देती है, लेकिन जब तक डील की सभी शर्तें सार्वजनिक नहीं होतीं और क्रियान्वयन शुरू नहीं होता, अस्थिरता बनी रहेगी। वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक, इलेक्ट्रिक वाहन कंपनियों और सेमीकंडक्टर क्षेत्र में इस खबर के बाद हल्का उछाल आया है, लेकिन निवेशकों का भरोसा अभी पूरी तरह बहाल नहीं हुआ है।
क्या यह डील लंबे समय तक चलेगी या फिर से टूटेगी?
फिलहाल सौदे की घोषणा ने राहत जरूर दी है, लेकिन विश्लेषक और व्यापारी इस डील की स्थिरता को लेकर संशय में हैं।
अगले कुछ हफ्तों में यह देखना अहम होगा
क्या चीन वास्तव में दुर्लभ खनिजों का निर्यात समय पर शुरू करता है? क्या अमेरिका अपने टैरिफ कम करने की प्रक्रिया को पारदर्शिता से आगे बढ़ाएगा? क्या छात्र वीज़ा और तकनीकी एक्सचेंज पर बनी सहमति जमीन पर लागू होगी? अमेरिकी कांग्रेस में भी ट्रंप प्रशासन से डील की पारदर्शिता पर सवाल पूछे जा सकते हैं।
दुर्लभ खनिजों की होड़ में भारत की भूमिका क्या होगी?
अब इस डील के साथ भारत के लिए भी एक रणनीतिक अवसर बन सकता है। भारत के पास भी दुर्लभ खनिजों के कुछ भंडार हैं, जिनका दोहन करके वह नई आपूर्ति श्रृंखला में जगह बना सकता है।
भारत अमेरिका और यूरोप के बीच “चाइना प्लस वन” रणनीति
भारत अमेरिका और यूरोप के बीच “चाइना प्लस वन” रणनीति में एक वैकल्पिक तकनीकी साझेदार बनकर उभर सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को इस मौके का फायदा उठाने के लिए नीतिगत तेजी और खनिज संसाधन विकास में निवेश बढ़ाने की ज़रूरत है।
उम्मीद जागी है, लेकिन सतर्कता जरूरी
बहरहाल इस डील से ये उम्मीद बनी है कि दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं फिर से सहयोग की ओर लौट सकती हैं। लेकिन जब तक समझौते की पूरी डिटेल्स और क्रियान्वयन योजना स्पष्ट नहीं होती, तब तक बाजार और दुनिया को सतर्क रहना होगा।