क्या है मामला?
2021 में अफगानिस्तान में सत्ता पर कब्जा करने के बाद से तालिबान ने महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों को गंभीर रूप से प्रतिबंधित किया है। तालिबान ने 100 से अधिक फरमानों और आदेशों के जरिए महिलाओं की शिक्षा, रोजगार, सार्वजनिक स्थानों पर आवाजाही, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निजी जीवन जैसे बुनियादी अधिकारों को छीन लिया है। लड़कियों को छठी कक्षा से आगे की शिक्षा पर रोक, सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के बोलने पर पाबंदी, और बिना पुरुष अभिभावक (महरम) के यात्रा करने पर प्रतिबंध जैसे कठोर नियम लागू किए गए हैं। इसके अलावा, तालिबान ने उन लोगों को भी निशाना बनाया है, जो उनकी लैंगिक नीतियों का विरोध करते हैं या महिलाओं के अधिकारों का समर्थन करते हैं।
आईसीसी की कार्रवाई
आईसीसी के मुख्य अभियोजक करीम खान ने जनवरी 2025 में इन नेताओं के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट की मांग की थी, जिसे 8 जुलाई 2025 को अदालत ने मंजूरी दे दी। यह पहली बार है जब आईसीसी ने लैंगिक उत्पीड़न को मुख्य अपराध मानकर किसी मामले में कार्रवाई की है। अदालत ने कहा कि तालिबान ने “महिलाओं और लड़कियों को उनके लिंग के आधार पर निशाना बनाकर उनके मूलभूत अधिकारों को छीना है।” इसके साथ ही, तालिबान की नीतियों के खिलाफ गैर-अनुरूप लैंगिक पहचान या अभिव्यक्ति वाले लोगों, जैसे एलजीबीटीक्यूआई+ समुदाय, और महिलाओं के समर्थकों को भी निशाना बनाया गया।
महिलाओं के खिलाफ अत्याचार
तालिबान ने महिलाओं को सार्वजनिक जीवन से लगभग पूरी तरह हटा दिया है। स्कूलों में लड़कियों की पढ़ाई पर रोक, कार्यस्थलों से महिलाओं को बाहर करना, सार्वजनिक स्थानों जैसे पार्क, जिम और सैलून में प्रवेश पर प्रतिबंध, और बिना पुरुष अभिभावक के 72 किलोमीटर से अधिक की यात्रा पर रोक जैसे कदमों ने अफगानिस्तान को महिलाओं के लिए दुनिया का सबसे दमनकारी देश बना दिया है। कुछ विशेषज्ञों ने इसे “जेंडर अपार्टहेड” (लैंगिक रंगभेद) की संज्ञा दी है। तालिबान की “नैतिकता पुलिस” को महिलाओं के खिलाफ हिंसा और उत्पीड़न के लिए भी जिम्मेदार ठहराया गया है, जिसमें हिरासत में बलात्कार और यातना की घटनाएं शामिल हैं।
तालिबान का जवाब
तालिबान ने आईसीसी की कार्रवाई को “बेबुनियाद” और “इस्लाम के प्रति शत्रुता” करार देते हुए खारिज कर दिया है। तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा कि वे किसी भी अंतरराष्ट्रीय अदालत को मान्यता नहीं देते और इसके आदेशों का पालन नहीं करेंगे। तालिबान का दावा है कि वे इस्लामी कानून और अफगान संस्कृति के अनुसार महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करते हैं।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
मानवाधिकार संगठनों ने आईसीसी के इस कदम का स्वागत किया है। ह्यूमन राइट्स वॉच की अंतरराष्ट्रीय न्याय निदेशक लिज एवेनसन ने कहा, “यह कार्रवाई अफगान महिलाओं और लड़कियों के लिए न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।” एमनेस्टी इंटरनेशनल की महासचिव एग्नेस कैलमर्ड ने इसे “अफगान महिलाओं, लड़कियों और एलजीबीटीक्यूआई+ समुदाय के लिए आशा की किरण” बताया। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि चूंकि अखुंदजादा और हक्कानी शायद ही कभी अफगानिस्तान से बाहर यात्रा करते हैं, इसलिए उनकी गिरफ्तारी की संभावना कम है।
रूस ने दी औपचारिक मान्यता
आईसीसी के पास अपनी पुलिस बल नहीं है, और वह अपने 125 सदस्य देशों पर गिरफ्तारी के लिए निर्भर करता है। हालांकि, पहले भी कई मामलों में सदस्य देशों ने गिरफ्तारी वारंट का पालन नहीं किया है, जैसे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के मामले में। विशेषज्ञों का कहना है कि यह कार्रवाई तालिबान की अंतरराष्ट्रीय वैधता को और कमजोर कर सकती है, खासकर तब जब रूस ने हाल ही में तालिबान को औपचारिक मान्यता दी है।
तालिबान की नीतियों को सख्त संदेश
आईसीसी का यह कदम अफगानिस्तान में महिलाओं और लड़कियों के लिए न्याय की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है, लेकिन इसकी वास्तविक प्रभावशीलता तालिबान नेताओं की गिरफ्तारी और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सहयोग पर निर्भर करेगी। यह कार्रवाई वैश्विक मंच पर तालिबान की नीतियों के खिलाफ एक मजबूत संदेश देती है, लेकिन अफगान महिलाओं के लिए जमीन पर बदलाव लाने के लिए और अधिक ठोस कदमों की जरूरत है।