मरीजों पर पड़ेगा असर
बड़े निजी अस्पताल बीमा कंपनियों द्वारा पुराने कांट्रेक्ट की दरों को नही बढ़ाने और कॉमन इंपैनलमेंट को लेकर विरोध में है। सितंबर से अस्पतालों में कैशलेस उपचार बंद करने की भी बात कही जा रही है। ऐसा होने पर इसका सीधा असर मरीजों पर पड़ेगा। उज्जैन शहर में ही प्रतिदिन ढाई हजार से अधिक मरीज निजी अस्पतालों में भर्ती रहते हैं। वहीं 10 हजार से ज्यादा ओपीडी में पहुंचते हैं। इनमें से बड़ी संख्या में मरीज निजी स्वास्थ्य बीमा कंपनी के उपभोक्ता होते हैं। उज्जैन में ऐसे बीमित मरीजों को अगस्त बाद निजी अस्पतालों में कैशलेस उपचार सुविधा मिलेगी या नहीं, फिलहाल स्पष्ट नहीं है। इस मुद्दे पर शुक्रवार को नर्सिंग होम एसोसिएशन के पदाधिकारी इस विषय पर बैठक कर आगे के लिए निर्णय लेंगे।
यह है मामला
एक बीमा कंपनी को लेकर बड़े अस्पतालों का आरोप है कि कंपनी ने पुराने कांट्रैक्ट की दरों को बढ़ाने से इंकार कर दिया है। साथ ही अस्तपालों पर और भी कम दर पर उपचार करने का दबाव डाला है। अस्पतालों की शिकायत है कि जब वे उपचार का खर्च बीमा कंपनियों को भेजते हैं तो बिना चर्चा के रकम में कटौती कर दी जाती है। मप्र नर्सिंग होम एसोसिएशन की ओर से अधिकृत कोई सूचना प्राप्त नहीं हुई है। अभी हमने स्थानीय स्तर पर इस संबंध में निर्णय नहीं लिया है। शुक्रवार को नर्सिंग एसोसिएशन के पदाधिकारियों की बैठक प्रस्तावित की गई है।- डॉ. अजय खरे, अध्यक्ष इंडियन मेडिकल एसोसिएशन उज्जैन
ये है कॉमन इंपैनलमेंट
कैशलेस इलाज की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए बीमा नियामक इरडा ने कॉमन इंपैनलमेंट का प्रस्ताव रखा है। कहा जा रहा है कि इससे मरीजों के लिए अधिक अस्पतालों में बिना एडवासं उपचार करवाना आसान हो जाएगा। बीमित व्यक्ति चाहे कंपनी बदले या दूसरी कंपनी से टॉपअप ले, कॉमन प्लेटफार्म से इलाज आसान होगा। प्रस्ताव से अन्य फायदे भी गिनाए जा रहे हैं। इसके विपरित कई अस्पतालों का मानना है कि यह प्रस्ताव एक तरफा है, ड्रॉट अस्पतालों से पूरी तरह चर्चा किए बिना बनाया गया है। इधर विषय से जुड़े कुछ लोगों का कहना है कि प्रस्ताव छोटे अस्पतालों के पक्ष में है।