दरअसल प्रताप के दादा थे वे और पराक्रमी योद्धा राणा सांगा…। शरीर खराब होने के बाद भी उन्होनें कई युद्ध लड़े और जीते। उन्होंने जीवन में जीतने भी युद्ध लड़े उन सभी भी दुश्मन को धूल चटा दी थी और सारे युद्ध जीते थे, सिवाय अपने जीवन के आखिर युद्ध को छोड़कर। उसमें हार के बाद उन्होनें कोई युद्ध नहीं लड़ा था।
राणा सांगा के जिनका नाम संग्राम सिंह था, वे मेवाड़ के शासक थे। बाबर जैसे शक्तिशाली शासकों तक से राणा सांगा ने लोहा लिया अपनी कम सेना के साथ। लेकिन साहस और युद्ध कौशल ऐसा था कि कम सेना में ही दुश्मन पर भारी पड़ते थे। कई लड़ाईयों में उन्होनें अपने शरीर के कई अंग गंवा दिए। उनके हाथ का पंजा कट गया था, एक आंख खराब हो चुकी थी। शरीर पर अस्सी गहरे घाव थे, लेकिन उसके बाद भी दुश्मन के छक्के छुड़ाते थे। यही कारण है कि आज इतिहास में उनका नाम अमर है।