अध्ययन की सह-लेखिका प्रोफेसर स्टेफनी लीएल ने बताया – “हमने पाया कि संगीत नकारात्मक हो या सकारात्मक या फिर परिचित हो, इसका उतना असर नहीं पड़ता। सबसे ज़्यादा असर इस बात का होता है कि सुनते समय व्यक्ति कितना भावनात्मक जुड़ाव महसूस करता है।”
उन्होंने कहा – “अगर भावनात्मक जुड़ाव बहुत ज्यादा या बहुत कम हो, तो याददाश्त कमजोर हो जाती है। लेकिन संतुलित भावनात्मक जुड़ाव होने पर लोग अनुभव की बारीक बातें बेहतर याद रख पाते हैं।”
संगीत, याददाश्त और भावनाएं
शोध में स्वयंसेवकों को रोजमर्रा की चीजों की तस्वीरें दिखाई गईं – जैसे संतरे, लैपटॉप और टेलीफोन। करीब 100 तस्वीरें देखने के बाद उन्हें 10 मिनट तक शास्त्रीय संगीत सुनाया गया। जब उनकी भावनात्मक स्थिति सामान्य हो गई, तो उनसे उन तस्वीरों को पहचानने को कहा गया। कुछ तस्वीरें बिल्कुल वही थीं, कुछ थोड़ी बदली हुईं और कुछ बिल्कुल नई। नतीजा यह निकला कि संगीत ने सबकी याददाश्त को एक समान नहीं बढ़ाया। लेकिन कुछ लोगों की स्मृति पर इसका गहरा असर हुआ, खासकर उन तस्वीरों को पहचानने में जो थोड़ी-सी बदली हुई थीं। मुख्य कारण था – भावनात्मक उत्तेजना। सबसे अच्छे परिणाम उन लोगों के आए जिन्होंने न बहुत ज़्यादा और न बहुत कम, बल्कि मध्यम स्तर की भावनाएँ महसूस कीं।
याददाश्त पर संगीत का असर
हमारी स्मृति हमेशा बारीकियों को नहीं, बल्कि बड़ी तस्वीर (gist-based memory) को पकड़ती है। लेकिन कई बार छोटी-छोटी बातें भी ज़रूरी होती हैं, जिसे detail-based memory कहा जाता है। लीएल के अनुसार, “संगीत ने detail-based memory को मज़बूत किया, लेकिन तभी जब व्यक्ति की भावनात्मक प्रतिक्रिया बिल्कुल संतुलित रही।” अगर इंसान बहुत भावुक हो जाए तो दिमाग़ बारीकियां धुंधली कर देता है। और अगर उसे कोई फर्क ही न पड़े, तो वह जानकारी सहेजता ही नहीं। मध्यम स्थिति में ही याददाश्त सबसे तेज़ होती है।
पढ़ाई और इलाज में संगीत
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह खोज पढ़ाई और चिकित्सा में मददगार हो सकती है। उदाहरण के लिए, पढ़ाई के बाद संतुलित भावनाओं वाला संगीत सुनना परीक्षा के लिए सही जानकारी याद रखने में सहायक हो सकता है। लेकिन बहुत भावुक संगीत इसका उल्टा असर डाल सकता है। लीएल कहती हैं – “संगीत मस्तिष्क के उस हिस्से को प्रभावित करता है जिसे हिप्पोकैम्पस कहते हैं। यही अनुभवों को यादों में बदलने का काम करता है। हमें लगता है कि इसका इस्तेमाल सीखने और इलाज दोनों में किया जा सकता है।” यह केवल पढ़ाई तक सीमित नहीं है। उम्र के साथ होने वाली याददाश्त की कमी या अल्ज़ाइमर जैसी बीमारियों के शुरुआती चरणों में भी यह मददगार हो सकता है। PTSD या चिंता से पीड़ित लोगों के लिए संगीत कठिन अनुभवों को बिना हर बारीकी याद किए समझने में सहायक हो सकता है।
हर किसी पर असर अलग
चुनौती यह है कि भावनात्मक असर हर व्यक्ति में अलग होता है। जो संगीत एक व्यक्ति को संतुलित भावनात्मक अनुभव देता है, वही दूसरे पर ज़रूरी नहीं कि असर करे। इसलिए शोध अब व्यक्तिगत (personalized) इलाज की ओर बढ़ रहा है। लीएल ने कहा – “संगीत बिना किसी नुकसान के, सस्ता और आसानी से व्यक्तिगत बनाया जा सकता है। अगर हम इसे समझ लें कि यह याददाश्त से कैसे जुड़ा है, तो इससे ऐसी थेरेपी बनाई जा सकती है जो बीमारी को बढ़ने से रोक दे।” लेकिन उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि अगर अल्जाइमर अनुसंधान के लिए सरकारी फंडिंग कम हुई तो व्यक्तिगत इलाज विकसित करना मुश्किल होगा, क्योंकि इसके लिए बहुत से प्रतिभागियों की जरूरत होती है।