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राजस्थान: प्री मानसून की बारिश के बाद खिले किसानों के चेहरे, खाद और बीज की खरीदारी ने पकड़ी रफ्तार

ज्येष्ठ माह की तपिश के बाद आषाढ़ माह की शुरूआत में प्री मानसून ने बारिश के बाद किसानों के चेहरों खुशी की झलक नजर आने लगी है। मानसून की मेहरबानी को देखते हुए किसानों ने अब खेतों की ओर रुख कर लिया है।

सीकरJun 18, 2025 / 05:45 pm

Kamlesh Sharma

Fertilizers and seeds

खाद-बीज की दुकान पर मौजूद किसान। फोटो पत्रिका

सीकर। ज्येष्ठ माह की तपिश के बाद आषाढ़ माह की शुरूआत में प्री मानसून ने बारिश के बाद किसानों के चेहरों खुशी की झलक नजर आने लगी है। मानसून की मेहरबानी को देखते हुए किसानों ने अब खेतों की ओर रुख कर लिया है। बारिश के साथ ही मंडियों और कृषि केंद्रों पर खाद और बीज की खरीदारी ने रफ्तार पकड़ ली है।
अगेती बुवाई से अच्छी पैदावार होने की आस में किसान अब समय रहते खेतों की तैयारी और बुवाई में जुट गए हैं। कृषि विभाग की मानें तो इस बार किसानों को सरकारी स्तर पर मिनीकिट्स और सब्सिडी युक्त बीज भी मुहैया कराए जा रहे हैं, जिससे किसानों की लागत कुछ हद तक कम हो सकेगी। कई जगहों पर बाजरा, मूंग, ग्वार जैसी फसलों की बुवाई शुरू हो चुकी है।
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि प्री मानसून बारिश ने खेतों में हरियाली की उम्मीदें जगा दी हैं। उम्मीद की जा रही है कि मानसून सामान्य रहा तो किसानों की मेहनत रंग लाएगी और मंडियों में भरपूर पैदावार देखने को मिलेगी। आगामी 7 से 10 दिनों में प्री मानसून ठीक तरह से सक्रिय रहा, तो जल्द ही पूरे जिले में बुवाई जोर पकड़ लेगी।
कृषि विभाग ने भी पर्यवेक्षकों को संबंधित गांवों का दौरा कर किसानों को फसल चक्र, मिट्टी परीक्षण और बीज चयन को लेकर तकनीकी सलाह देने के निर्देश दिए हैं। गौरतलब है कि सीकर जिले में खरीफ सीजन की बुवाई से करीब साढ़े चार लाख किसान जुड़े हुए हैं।
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जैविक खाद का रुझान

प्री मानसून की बारिश से खेतों में एक साथ प्राकृतिक पळाव हो गया है। जिससे खेती संबंधी बाजारों में भी चहल-पहल लौट आई है। खाद-बीज विक्रेताओं के अनुसार, डीएपी, यूरिया और उन्नत किस्म के बीजों की मांग काफी बढ़ी है लेकिन इस बार किसानों का रुझान जैविक खाद की ओर भी देखने को मिल रहा है। कृषि विभाग के अनुसार कृषि आदानों की पूरी मांग भेज रखी है।
खरीफ सीजन में रबी सीजन की तुलना में डीएपी, यूरिया उर्वरक व रसायनों की जरूरत होती है। कृषि विभाग के पास जिले में डीएपी के विकल्प के रूप में फिलहाल पर्याप्त मात्रा में सिंगल सुपर फास्फेट उपलब्ध है। अंकुरण के करीब बीस दिन बाद यूरिया की जरूरत पड़ने लगती है।

कीमतों में हुआ इजाफा

बुवाई के सीजन में बीज, खाद और अन्य कृषि संसाधनों का खर्च उत्पादन लागत को प्रभावित करता है। खरीफ सीजन में प्रमुख फसलों जैसे बाजरा, मूंग, कपास, ग्वार, और तिल की बुवाई के लिए बीज की आवश्यकता होती है। किसानों के अनुसार इस बार बाजार में उन्नत किस्म के बीज की कीमतें पहले से थोड़ा बढ़ी हैं। वहीं मजदूरी, बिजली खर्च भी बढ़ा है लेकिन खरीफ फसलों की अच्छी पैदावार के लिए डीएपी, यूरिया, और जिंक जैसी रासायनिक खाद व कीटनाशकों का उपयोग जरूरी होता है।

इनका कहना है

दो दिन से प्री मानसून की अच्छी बारिश के बाद अब खेतों में हलचल बढ़ी है। फील्ड से भी बुवाई के संकेत मिलने शुरू हो गए हैं। बारिश के रुझान को देखते हुए खरीफ बुवाई जल्द ही लक्ष्य पूरे होने के आसार है। जिले में डीएपी के विकल्प की पर्याप्त उपलब्धता है। फसलों की निराई गुडाई के बाद यूरिया की मांग रहती है। प्रदेश स्तर पर रबी सीजन के दौरान ही डिमांड भेज दी गई थी।
रामनिवास पालीवाल, अतिरिक्त निदेशक कृषि खंड सीकर

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