हाईकोर्ट ने माना कि अवैध नियुक्तियों से अभ्यर्थियों के साथ धोखा किया गया। कोर्ट ने फैसले में उल्लेख किया कि उचित विज्ञापन दिए बिना, यूजीसी चयन प्रक्रिया का पालन किए बिना और यहां तक कि बिना आवेदन वाले या पहले अस्वीकृत लोगों की भी नियुक्ति की गई थी। सहायक प्राध्यापक की नियुक्तियों के संबंध में वहां की कार्य परिषद (ईसी) ने 14 नवंबर 2022 को जो फैसला किया था उसे भी हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। इसी की आड़ में विश्वविद्यालय प्रशासन ने 157 पदों पर नियुक्तियां की गई थीं।
विवादित बैठक में भाग लेने वालों से वसूल सकेंगे राशि
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जुर्माने की राशि केंद्रीय विश्वविद्यालय को उन व्यक्तियों से वसूलने की स्वतंत्रता होगी जिन्होंने 14 नवंबर 2022 की विवादित बैठक में भाग लिया था। चूंकि विश्वविद्यालय ने मामले में पूरी तरह से अवैधानिक कार्य किया है, इसलिए छूटे हुए अभ्यर्थियों के अधिकारों को पराजित करने और अवैध रूप से चयनित अभ्यर्थियों को बचाने का प्रयास करने के लिए विश्वविद्यालय पर उचित जुर्माना लगाया जाना जरूरी है।
कुलाध्यक्ष के तौर पर राष्ट्रपति की सलाह को किया नजरअंदाज
कोर्ट ने कहा कि यह उसके पहले के आदेशों को दरकिनार करने, कुलाध्यक्ष की सलाह को नजरअंदाज करने और पिछली अवैधता को छिपाने का एक स्पष्ट प्रयास था। इससे पहले 2018 में कोर्ट ने कहा था कि यह प्रक्रिया दूषित है और कुलाध्यक्ष (भारत के राष्ट्रपति) ने सभी उम्मीदवारों का पुन: साक्षात्कार व पुनर्मूल्यांकन की सलाह दी थी। 2020 में विश्वविद्यालय(Sagar University) ऐसा करने के लिए सहमत हो गया। 2022 में अचानक बिना किसी नए चयन के शेष 82 सहायक प्रोफेसरों को पुष्टि करने का निर्णय ले लिया। कोर्ट ने 2022 के फैसले को रद्द कर नए चयन की आवश्यकता वाले 2020 के फैसले को बहाल कर दिया।
नई नियुक्ति के निर्देश
कोर्ट ने ईसी के 7 फरवरी 2020 के फैसले के तहत नई नियुक्ति प्रक्रिया 3 माह के भीतर करने के निर्देश दिए। कहा, ऐसा नहीं होता है तो 14 नवंबर 2022 के फैसले के तहत नियुक्त असिस्टेंट प्रोफेसर 15 नवंबर 2025 से काम नहीं कर सकेंगे। यदि प्रक्रिया उस तिथि से पहले पूरी हो जाती है तो सिर्फ उन्हीं सहायक प्राध्यापकों को रखा जाएगा जो ईसी की 7 फरवरी 2020 की बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसार पुनर्मूल्यांकन और पुन: साक्षात्कार में पात्र पाए जाते हैं। योग्य उम्मीदवारों का हक छीनने पर कोर्ट ने विवि प्रशासन पर पांच लाख रुपएका जुर्माना लगाया।