मन में अच्छे विचार कैसे आएंगे (Man Mein Acche Vichar Kaise Laen)
प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि किसी भी व्यक्ति के मन में अच्छे और बुरे भाव के लिए 10 बातें जिम्मेदार हैं, इन्हें नियंत्रित कर हर व्यक्ति अपने मन में अच्छे विचार ला सकता है और मन से गंदे विचार खत्म कर सकता है। ये 10 बातें भागवतिक हुईं तो मन में भागवतिक बातें आएंगी और ये रजोगुणी तमोगुणी हुईं तो व्यक्ति में आसुरी भाव बढ़ता है। इन 10 से सावधानी पूर्वक व्यवहार होना चाहिए।
महाराज जी ने कहा कि वृंदावन धाम आने वालों को ज्यादा व्यवहार पर ध्यान नहीं देना चाहिए, न पड़ोसी को कुछ देना चाहिए और न लेना चाहिए। यहां वनवासी हो, और एकांत में रहकर नाम जप और साधना पर ध्यान देना चाहिए। कुछ बांटना हो ऐसी जगह बांटो कि वो व्यक्ति दोबारा न मिले। वर्ना फिर वो आएगा, फिर प्रपंच होगा।
स्थान
प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं मन में भावों के लिए स्थान की बड़ी भूमिका होती है। आप कहां बैठे हैं, कहां रह रहे हैं, किस जगह खड़े हैं, उसका मन पर असर पड़ता है। उदाहरण के लिए मदिरालय के पास खड़ें हैं तो तमोगुण और आसुरी प्रवृत्ति आपके मन में बढ़ने लगेगी।
अन्न
अच्छे बुरे भाव के लिए दूसरी सबसे जिम्मेदार चीज अन्न है। यदि अन्न अधर्म से कमाया गया है तो खाने वाले की वृत्ति (बुद्धि) अधर्म में ही लगेगी। यदि भोजन बनाते समय या रसोई लांघते समय आप विकारात्मक चिंतन कर रहे हैं तो कोई भी प्रसाद पाए उसमें विकार जागृत हो जाएगा। इससे अन्न दोष उत्पन्न होता है, ऐसे में उपवास कर दोष वृत्ति दूर करनी चाहिए। वृंदावन की परिक्रमा से भी मन का विकार शांत होता है।
जल
पानी संभाल कर पीना चाहिए। गंगाजल, कुएं का जल पीने से पौष्टिकता मिलती थी, अब पवित्र जल के लिए तरस रहे हैं। जल का साधना में बड़ा महत्व है। दूषित जल भी मन को कमजोर बनाता है और मन में गंदे विचार लाता है।
परिकर
जहां रह रहे हैं वह समुदाय, वह कैसा है, रजोगुणी है या तमोगुणी है या त्रिगुणातीत है, इसका भी असर पड़ेगा।
पड़ोस
आसपास वाले घर जैसे हैं, वैसा आप पर प्रभाव पड़ेगा। पड़ोस निंदनीय है तो बंधन में पड़ना पड़ेगा। इसलिए पड़ोस अच्छा रहे, इसका प्रयास करना चाहिए। लंका के पड़ोस में रहने से समुद्र को बंधना पड़ा।
दृश्य
दृश्य को लेकर अधिक सावधान रहना चाहिए। बुरे दृश्य से बचना चाहिए। इसका विचार पर बड़ा असर पड़ता है, क्योंकि संसार गुणदोषमय है, जो अच्छी बात सीखना चाहता है उसके लिए वैसा मौका है वर्ना बुरे के लिए बहुत से अवसर है। चंचल वृत्ति दुरुपयोग के लिए हमेशा उत्साहित करती है।
जो वृत्ति को बचा ले गया, वही साधना कर सकता है। गलत दृश्य से बावरे बन सकते हो, अच्छे दृश्य से भगवान के मार्ग के पथिक हो सकते हैं। अच्छे दृश्य में भी दोष की दर्शन की वृत्ति की गुंजाइश है। अगर हमारी भावना शासन में नहीं है तो अच्छे दृश्य जैसे लीला देखते समय भी अंग प्रत्यंग देख कर भावना (वृत्ति) बिगड़ सकती है।
साहित्य
ऐसा साहित्य न पढ़ें, जिससे मन के भाव दूषित हों। ऐसा साहित्य पढ़ें जिससे मन को सद्मार्ग पर चलने की सीख मिले, भगवत भक्ति की ओर मन प्रवृत्त हो। ये भी पढ़ेंः
आलोचना
ऐसी वार्ता और आलोचना न करें कि मन में गंदे विचार आएं। अच्छी चर्चा से अच्छे भाव आते हैं। गंदी चर्चा से हृदय विकार युक्त हो जाता है।
आजीविका का कार्य
कार्य का प्रभाव भी मन पर पड़ता है। आप आजीविका के लिए किस तरह का कार्य करते हैं, उसी तरह के खयाल आपके मन में पैदा होते हैं और वैसे ही आपके मन के विचार बनने लगते हैं।
उपासना
आप उपासना भोग की करते हैं या योग की करते हैं, इसका मन के विचारों पर बड़ा असर पड़ता है। इन 10 से भाव बनते हैं और बिगड़ते हैं।