मंदिर का पुराना गौरव और अनकही कहानियां
हालांकि झरनेश्वर महादेव के निर्माण का कोई ठोस लिखित इतिहास नहीं मिलता, लेकिन लोककथाएं और बुजुर्गों के शब्द इसके प्राचीन वैभव की कहानियां आज भी जीवित रखे हुए हैं। कहा जाता है कि करीब 700 से 800 वर्ष पहले यह शिवालय निर्मित हुआ था। पुराने लोगों से सुनी गई किवदंतियों के अनुसार, किसी जमाने में यहां मूसलधार बारिश से अचानक उफनते बरसाती नाले ने इस मंदिर को बहा दिया था। इसके प्रमाण आज भी डाबुन बावड़ी इलाके में बिखरी मंदिर की पुरानी स्थापत्य शिलाओं के रूप में देखे जा सकते हैं। राजशाही दौर में इस प्राचीन धरोहर को फिर से संवारने का श्रेय पृथ्वीसिंह नामक थानाधिकारी को जाता है। बताया जाता है कि तीन सौ वर्ष पहले वे खमनोर दरबार में नियुक्त थे और कैदियों को घोड़े पर बिठाकर यहां लाते थे। उन कैदियों से सश्रमश्रम कराकर मंदिर के पुनर्निर्माण का कार्य करवाया गया।
समय के साथ कुछ और बदलाव भी हुए
आजादी के बाद गांव के वरिष्ठ भक्त पूर्णाशंकर ने इस पवित्र स्थल के पुनरुद्धार में योगदान दिया। उन्होंने मंदिर के बरामदे और चौक आदि का निर्माण करवाया, जिससे यह स्थल भक्तों के लिए अधिक रमणीय और व्यवस्थित बन सका। वर्ष 2022 में श्रद्धालुओं ने मिलकर शिवलिंग, गणेशजी और माता पार्वती की पुनर्प्राण-प्रतिष्ठा कर इसे एक बार फिर ऊर्जा से भर दिया।
जहां शिव के साथ प्रकृति भी दर्शन देती है
झरनेश्वर महादेव मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण यहां का मनमोहक प्राकृतिक परिवेश है। चारों ओर लहराते हरे-भरे पहाड़, कलकल करती झरने की धारा और निर्मल पर्वतीय हवाएं-यह सब मिलकर श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति ही नहीं, आत्मिक ताजगी भी देते हैं। श्रावण मास में तो यहां का वातावरण भक्ति रस से सराबोर हो उठता है। शिवभक्तों और आचार्यों द्वारा प्रतिदिन गर्भगृह में भोलेनाथ का अभिषेक और भव्य श्रृंगार होता है। झरना भी इस मौसम में पूरे यौवन पर होता है, जिसके कारण जलकुंड की सुंदरता और भी बढ़ जाती है। यहां आकर हर भक्त प्रकृति और शिवभक्ति के अद्भुत संगम का अनुभव करता है। कोई भी झरनेश्वर महादेव के दर पर खाली हाथ नहीं लौटता- यहां से हर किसी को मिलती है आत्मिक तृप्ति और भोलेनाथ का आशीर्वाद।