जूनियर रेसीडेंट डॉक्टर नौकरी तो
आंबेडकर अस्पताल में कर रहा है, लेकिन छुईखदान में निजी अस्पताल भी चला रहा है। उनके पास एमबीबीएस के साथ गायनी डिप्लोमा की डिग्री भी है। इसलिए वह गायनेकोलॉजिस्ट बतौर निजी अस्पताल का संचालन कर रहा है। उन्होंने मुंबई सर्जन कोर्स से दुर्ग जिला अस्पताल में ऑब्स एंड गायनी का डिप्लोमा कोर्स किया है। चूंकि रेडियोलॉजी में जूनियर रेसीडेंट डॉक्टरों की खास भूमिका नहीं रहती इसलिए मौके की नजाकत को समझते हुए डॉक्टर ज्यादातर समय गायब रहता है।
पत्रिका ने इस मामले में रेडियो डायग्नोसिस के एचओडी से पतासाजी की थी, जिसमें उनके बिना ड्यूटी में आए हाजिरी रजिस्टर पर हस्ताक्षर मिला था। यानी विभाग का कोई स्टाफ उनका रेगुलर हस्ताक्षर कर रहा है। हालांकि इस मामले में सब कुछ पता होते हुए भी न अस्पताल प्रबंधन ने कार्रवाई की और न ही कॉलेज ने। हाल में खैरागढ़ के कुछ जनप्रतिनिधियों ने कलेक्टर से डॉक्टर की शिकायत की थी। कलेक्टर ने यह पत्र कमिश्नर मेडिकल एजुकेशन के पास भेज दिया। इससे कमिश्नर शिखा राजपूत तिवारी खूब नाराज बताई जा रही हैं।
दरअसल, इस मामले को लेकर ध्यानाकर्षण में विधानसभा में सवाल लगाया जा सकता है। इसी बात को लेकर चिकित्सा शिक्षा संचालनालय के अधिकारी टेंशन में आ गए हैं। कमिश्नर इस बात से भी नाराज बताई जा रही हैं कि अस्पताल व कॉलेज प्रबंधन ने डॉक्टर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। जबकि मामले की जानकारी पहले से है।