CG News: हिंदी का नामोनिशां नहीं
नियम ऐसे बना दिए हैं कि 31 जुलाई से पहले इनकार का प्रपत्र नहीं भरने वाले किसानों की फसलों का भी ऑटोमेटिक बीमा हो जाएगा। आरंग समेत आसपास के गांवों में कई
किसानों का जबरन बीमा हो भी चुका है। कंपनी का काम ऐसा है कि किसानों ने 31 जुलाई तक बीमा इनकार का प्रपत्र नहीं भरा, तो उनका जबरन फसल बीमा हो जाएगा। अगर किसान शॉर्ट टर्म लोन नहीं लेता या बीमा इनकार का प्रपत्र नहीं भरता, तब भी बैंक से लिए गए पुराने लोन को बीमा के लिए जरूरी समझा जाएगा।
ऐसी नीतियों के चलते यह पहली मौका है जब सरकारी योजना की आड़ में नाम पर न चाहने वाले किसानों पर भी बीमा थोपा जा रहा है। इससे जुड़ा प्रपत्र पूरी तरह अंग्रेजी में है। हिंदी का नामोनिशां नहीं। यही वजह है कि बहुत से किसानों के साथ कई सोसाइटी कर्मी भी इस जबरन बीमा की बारीकियों को नहीं समझ पा रहे। शासन को चाहिए कि ऐसी जानकारियां स्थानीय भाषाओं में दी जाए, ताकि लोग अपना हित-अहित समझकर योजनाओं को अपनाएं।
किसान परेशान
भूपेंद्र शर्मा, संयोजक किसान संघर्ष समिति: पिछले सालों में कई किसान पीएम किसान फसल बीमा योजना का लाभ नहीं उठा पाए हैं। पूरा फायदा बीमा कंपनी ही लेती आई है। अब जबरदस्ती बीमा के लिए मजबूर कर उन्हें और परेशानी में डाला जा रहा है। सरकार द्वारा संचालित योजना के तहत रायपुर, बलौदाबाजार, महासमुंद, बिलासपुर, दुर्ग, महेंद्रगढ़, चिरमिरी-भरतपुर, मुंगेली, सुकमा, सरगुजा, बालोद, दंतेवाड़ा, गौरेला पेद्रा मरवाही में फसलों के बीमा के लिए एग्रो जनरल इंश्योरेंस कंपनी को काम दिया गया है। रायपुर और बलौदाबाजार जिले में किसानों से जबरन बीमा करवाने के अलावा बाकी जिलों से भी इसी तरह की शिकायतें सामने आ रहीं हैं। ऐसे में प्रेक्षक बैंकों, सोसाइटियों के साथ किसानों को जागरूक होने की जरूरत है।
पुराने खराब अनुभवों के चलते कई किसान बीमा से हिचक रहे
CG News: सरकार ने
फसल बीमा के तहत सिंचित-असिंचित धान, उड़द, मूंग, मूंगफली, कोदो, कुटकी, मक्का, अरहर, तुअर, रागी और सोयाबीन की फसलों को शामिल किया है। सिंचित धान के बीमा के लिए प्रीमियम राशि 1200 रुपए तय की गई है। इसमें नुकसान होने पर किसानों को प्रति हैक्टर 60 हजार रुपए की दर से भुगतान किया जाएगा। वहीं, असिंचित फसलों के लिए प्रीमियम की राशि 900 रुपए तय की गई है। नुकसान की स्थिति में प्रति हैक्टर 45 हजार रुपए मुआवजे के तौर पर दिए जाएंगे। हालांकि, पुराने खराब अनुभवों के चलते कई किसान बीमा से हिचक रहे हैं।