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छत्तीसगढ़ का सुगंधित पसहर चावल, त्योहारों और व्रत-पूजा का खास अनाज, जानें मान्यता…

Pashar Rice in CG: छत्तीसगढ़ में पसहर चावल एक विशेष प्रकार का धान है, जो आमतौर पर मेड़, तालाब या पोखर के किनारे उगाया जाता है।

रायपुरAug 14, 2025 / 05:46 pm

Shradha Jaiswal

छत्तीसगढ़ का सुगंधित पसहर चावल(photo-patrika)

छत्तीसगढ़ का सुगंधित पसहर चावल(photo-patrika)

Pashar Rice in CG: छत्तीसगढ़ में पसहर चावल एक विशेष प्रकार का धान है, जो आमतौर पर मेड़, तालाब या पोखर के किनारे उगाया जाता है। यह चावल अपनी प्राकृतिक सुगंध, हल्के स्वाद और पौष्टिक गुणों के लिए प्रसिद्ध है। पानी के नजदीक इसकी खेती होने के कारण इसमें नमी की प्रचुरता रहती है, जिससे दानों में मुलायमपन और खास खुशबू आती है।
पारंपरिक रूप से इसे विशेष त्योहारों, खासकर खमरछठ (हलषष्ठी) जैसे अवसरों पर पकाया जाता है, जहां महिलाएं व्रत या पूजा में इसे प्रसाद के रूप में उपयोग करती हैं। स्थानीय किसानों के लिए पसहर चावल एक अहम फसल मानी जाती है, क्योंकि इसकी मांग हमेशा बनी रहती है और यह बाजार में साधारण सुगंधित चावलों से भी ऊंचे दाम पर बिकता है।
छत्तीसगढ़ में पसहर चावल की सबसे ज्यादा बिक्री सावन और भादो महीने में होती है, जब खमरछठ (हलषष्ठी), तीज, जनमाष्टमी और अन्य व्रत-पूजा के पर्व मनाए जाते हैं। इन अवसरों पर महिलाएं पारंपरिक रूप से पसहर चावल खरीदती हैं, क्योंकि इसे व्रत के भोजन और पूजा के प्रसाद के लिए सबसे पवित्र माना जाता है।

Pashar Rice in CG: छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा पसहर चावल की बिक्री

त्योहारों से एक-दो दिन पहले बाजारों में इसकी मांग अचानक बढ़ जाती है और भीड़ उमड़ पड़ती है।

ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरों तक इसकी बिक्री चरम पर होती है, खासकर रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, बिलासपुर, कवर्धा और महासमुंद जैसे जिलों के हाट-बाजारों में।
इस समय इसकी कीमत सामान्य चावल से दोगुनी तक हो सकती है, फिर भी लोग इसे श्रद्धा और परंपरा के कारण जरूर खरीदते हैं।

हलषष्ठी त्योहार के एक दिन पहले सजा बाजार

हलषष्ठी पर्व पर पूजा में इस्तेमाल किए जाने वाले पसहर चावल की बिक्री सप्ताह भर पहले से शुरू हो गई है। हलषष्ठी पर्व को 1 दिन बचे हैं, लेकिन पसहर चावल कहीं खत्म न हो जाए और पूजा वाले दिन कीमत न बढ़ जाए, इसलिए महिलाएं चावल खरीदने लगी हैं।
आम दिनों में पसहर चावल को लोग बाग नहीं खरीदते मगर हलषष्ठी में पूजा के लिए बिना हल जोते पैदा होने वाले अनाज का महत्व होने के कारण इसकी मांग बढ़ जाती है। पसहर चावल की पैदावार कम होने और पूजा में इसके महत्व के चलते यह सुगंधित चावल से दोगनी-तिगुनी कीमत पर बिकता है।

छत्तीसगढ़ बाजार व्यापार

बाजार में पसहर चावल फिलहाल 100 -120 किलो बिक रहा है। इसके अलावा बाजार में पूजन की अन्य सामग्री महुआ, दोना, टोकनी, लाई व अनेक प्रकार की भाजियां आदि भी महंगे दामों में मिलते हैं। कचहरी चौक के पास पसहर चावल बेच रही महिलाओं ने बताया कि पसहर चावल खेत, खलिहानों में नहीं उगाया जाता बल्कि यह अपने आप नालों, तालाबों, पोखरों, गड्ढों के किनारे उगता है। इसे साफ-सफाई करके बाजार में बेचा जाता है।
एचएमटी, दुबराज, जवाफूल आदि सुगंधित चावलों की तरह पसहर चावल में सुगंध व स्वाद नहीं होता किन्तु छत्तीसगढ़ की संस्कृति में हलषष्ठी पर जिले में घर-घर में महिलाएं पूजा के दौरान पसहर चावल को पकाकर भोग लगाकर उसका सेवन करती हैं। इसी मान्यता के चलते पसहर चावल की मांग बढ़ जाती है और खरीदने वालों की भीड़ के कारण कीमत भी बढ़ जाती है।

पूजा में बिना हल जोते उगने वाली फसल की मान्यता

पं. हरनारायण तिवारी के अनुसार शास्त्रीय मान्यता है कि भादो कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। कृषि कार्यों में इस्तेमाल किए जाने वाले हल को शस्त्र के रूप में बलराम धारण करते थे। इसके चलते इस पर्व को हलषष्ठी के नाम से भी जाना जाता है।
छत्तीसगढ़ की महिलाएं हलषष्ठी व्रत की पूजा में बिना हल जोते पैदा होने वाले अनाज का भोग लगाकर पूजा करती हैं। साथ ही छह प्रकार की भाजी और दूध, दही का भी भोग लगाया जाता है। पूजा के बाद महिलाएं पसहर चावल को पकाकर व्रत खोलतीं हैं। बिना हल जोते अपने आप पैदा होने वाले अनाज को ही पसहर चावल के नाम से जाना जाता है।

मेड़, तालाब, या पोखर के किनारे उगता है

छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले में हलषष्ठी पर्व पर पूजा में इस्तेमाल किए जाने वाले पसहर चावल की बिक्री सप्ताह भर पहले से शुरू हो गई है। हलषष्ठी पर्व को 1 दिन बचे हैं, लेकिन पसहर चावल कहीं खत्म न हो जाए और पूजा वाले दिन कीमत न बढ़ जाए, इसलिए महिलाएं चावल खरीदने लगी हैं। आम दिनों में पसहर चावल को लोग बाग नहीं खरीदते मगर हलषष्ठी में पूजा के लिए बिना हल जोते पैदा होने वाले अनाज का महत्व होने के कारण इसकी मांग बढ़ जाती है।
पसहर चावल की पैदावार कम होने और पूजा में इसके महत्व के चलते यह सुगंधित चावल से दोगनी-तिगुनी कीमत पर बिकता है। बाजार में पसहर चावल फिलहाल 100 -120 किलो बिक रहा है। इसके अलावा बाजार में पूजन की अन्य सामग्री महुआ, दोना, टोकनी, लाई व अनेक प्रकार की भाजियां आदि भी महंगे दामों में मिलते हैं। कचहरी चौक के पास पसहर चावल बेच रही महिलाओं ने बताया कि पसहर चावल खेत, खलिहानों में नहीं उगाया जाता बल्कि यह अपने आप नालों, तालाबों, पोखरों, गड्ढों के किनारे उगता है।
इसे साफ-सफाई करके बाजार में बेचा जाता है। एचएमटी, दुबराज, जवाफूल आदि सुगंधित चावलों की तरह पसहर चावल में सुगंध व स्वाद नहीं होता किन्तु छत्तीसगढ़ की संस्कृति में हलषष्ठी पर जिले में घर-घर में महिलाएं पूजा के दौरान पसहर चावल को पकाकर भोग लगाकर उसका सेवन करती हैं। इसी मान्यता के चलते पसहर चावल की मांग बढ़ जाती है और खरीदने वालों की भीड़ के कारण कीमत भी बढ़ जाती है।

पूजा में बिना हल जोते उगने वाली फसल की मान्यता

पं. हरनारायण तिवारी के अनुसार शास्त्रीय मान्यता है कि भादो कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। कृषि कार्यों में इस्तेमाल किए जाने वाले हल को शस्त्र के रूप में बलराम धारण करते थे। इसके चलते इस पर्व को हलषष्ठी के नाम से भी जाना जाता है।
छत्तीसगढ़ की महिलाएं हलषष्ठी व्रत की पूजा में बिना हल जोते पैदा होने वाले अनाज का भोग लगाकर पूजा करती हैं। साथ ही छह प्रकार की भाजी और दूध, दही का भी भोग लगाया जाता है। पूजा के बाद महिलाएं पसहर चावल को पकाकर व्रत खोलतीं हैं। बिना हल जोते अपने आप पैदा होने वाले अनाज को ही पसहर चावल के नाम से जाना जाता है।

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