राजस्थान भाषा व साहित्य को जीवन समर्पित करने वाले शेखावत ने जीवन की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में की थी। इसके बाद वे बीडीओ बने। इस बीच उनका साहित्य प्रेम बढ़ता गया। राजस्थानी भाषा और संस्कृति व आदिवासी जीवन पर लिखे साहित्य के कारण यह पुरस्कार मिला है। उन्होंने 40 पुस्तकें लिखी। कई पुस्तकों का अनुवाद और संपादन किया है। उनको राजस्थानी व हिन्दी के साथ ही गुजराती व आदिवासी भाषाओं का भी ज्ञान था।
अंतिम सांस तक किया संघर्ष
राजस्थानी भाषा से प्रेम करने वाले शेखावत ने अंतिम सांस तक राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए संघर्ष किया। शेखावत के पुत्र वीरेन्द्रसिंह शेखावत ने बताया कि पिता अर्जुनसिंह को साहित्य के लिए पद्मश्री के साथ ही कई पुरस्कार मिले। उनकी सबसे चर्चित पुस्तक भाखर रा भोमिया रही। यह पुस्तक यूएनओ से पुरस्कृत हुई।
शेखावत को मिले मुख्य सम्मान व उनका जीवन परिचय
जन्म: 4 फरवरी 1934, भादरलाऊ गांव में शिक्षा: एमए, बीएड, साहित्यरत्न, आयुर्वेदरत्न, वैद्याचार्य आदि। प्रधानाचार्य पद से सेवानिवृत: 29 फरवरी 1992 पहली रचना प्रजा सेवक वर्ष 1952 में प्रकाशित
राजस्थानी गद्य संग्रह पाठ्यक्रम में वर्ष 1993 व 2008 में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान में रचनाएं प्रकाशित। साहित्य सेवी पुरस्कार: 1959 आर्च ऑफ एक्सीलेंसी अवार्ड अमरीका: 1994 अम्बेडकर फैलोशिप व मेडल: 1999 व 2007 राष्ट्रीय रत्न व भारत गौरव : 1999 व 2007 गौरी शंकर कमलेश राजस्थानी पुरस्कार : 2003
शिवचन्द्र भरतिया गद्य पुरस्कार : 2006 महेन्द्र जाजोदियापुरस्कार: 2007 यूनेस्को चेतना अवार्ड: 2007 अनुवाद पुरस्कार: 2009 सीताराम रूंगटा राजस्थानी साहित्य पुरस्कार: 2013