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स्वास्थ्य बीमा का आर्थिक बोझ कहां जाए आम आदमी?

—मधुरेन्द्र सिन्हा
(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार )

जयपुरJun 15, 2025 / 12:12 pm

विकास माथुर

हाल ही एक खबर पढ़ी कि कोलकाता के 38 वर्षीय घोष साहब के सिर्फ 5 लाख रुपए के स्वास्थ्य बीमा की पॉलिसी रिन्यूवल के लिए बीमा कंपनी ने 75,000 रुपए प्रीमियम मांगा। यह राशि 10 फीसदी नो क्लेम बोनस के बाद की है। प्रीमियम बेहद महंगे हो गए हैं और अफोर्डेबल नहीं रह गए हैं। स्विट्जरलैंड के री इंस्टीट्यूट ने भारत सहित दस देशों की रिसर्च के हवाले से बताया है कि पिछले साल से इंश्योरेंस महंगा होने का जो सिलसिला शुरू हुआ था, वह इस साल और इसके अगले साल भी जारी रहने की संभावना है।
रिपोर्ट के मुताबिक भारत में गैर जीवन बीमा के प्रीमियम दुनियाभर के देशों के मुकाबले वर्ष 2024-25 में ज्यादा तेजी से बढ़े, जिनके अगले साल और तेजी से बढऩे की संभावना है। रिपोर्ट में 2026 में बीमा प्रीमियम में 9.3 फीसदी की बढ़ोतरी की संभावना जताई गई है जो वैश्विक औसत वृद्धि दर 4.1 फीसदी के अनुमान का दोगुना है। हैरानी की बात है कि स्वास्थ्य जैसे जीवनरक्षक क्षेत्र पर टैक्स की भारी मार है। इस समय हेल्थ इंश्योरेंस पर 18 फीसदी जीएसटी है। पिछले कुछ सालों से इसे घटाने की मांग हो रही है लेकिन पिछली बार जब इसे घटाने का मुद्दा जीएसटी काउंसिल में गया तो कई राज्यों के वित्त मंत्रियों ने विरोध किया। कुछ ने चुप्पी साध ली और कुछ चाहते थे कि इसे बाद में देखा जाए। यानी हेल्थ इंश्योरेंस से होने वाली कमाई का लाभ सभी उठाना चाहते हैं जबकि अपने राज्यों में स्वास्थ्य सुविधाएं देने में फिसड्डी रहे हैं। दिल्ली तक में अस्पतालों की हालत खराब है।
राज्यों में जो सरकारी अस्पताल हैं वे भारी भीड़ और कुप्रबंधन से परेशान हैं। नतीजा यह है कि बीमार होने पर मिडिल क्लास के लोग सरकारी अस्पताल जाना नहीं चाहते क्योंकि वहां की हालत ऐसी नहीं होती कि सुगमता से इलाज कराया जा सके। और जब वे प्राइवेट अस्पताल जाते हैं तो वहां उनका बजट बिगड़ जाता है। आंकड़ों के मुताबिक सिर्फ 10 फीसदी लोगों के पास ही रिटेल इंश्योरेंस है। 18 करोड़ लोग ग्रुप इंश्योरेंस के दायरे में हैं। बीमा नियामक आईआरडीएआई के अनुसार देश में 90 करोड़ लोगों के पास बीमा नहीं है। आयुष्मान भारत में 30 करोड़ लोग बीमित हैं, लेकिन जनसंख्या का बड़ा हिस्सा इससे अभी दूर है। बीमा का दायरा बढ़ाने के बारे में कई बार मुहिम चली है लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात।
दुख की बात है कि मेडिकल खर्च में हर साल 15 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है, डॉक्टरों की फीस और अस्पतालों का चार्ज बढ़ता ही जा रहा है। 1938 में बने बीमा कानून में 2021 में संसद ने संशोधन किया था। उसका उद्देश्य यह बताया गया था कि इससे बीमाकर्ता कंपनी और पॉलिसी होल्डर के बीच बेहतर संबंध बनें तथा जल्दी दावों का निबटान हो। उस समय कहा गया था कि इसके बाद देश में बीमा व्यवसाय अधिक प्रोफेशनल होगा और देश में इसका प्रसार होगा। उस संशोधन के जरिये विदेशी कंपनियों को भारतीय बीमा कंपनियों में पहले के 49 फीसदी से बढ़ाकर 74 फीसदी निवेश करने की इजाजत दी गई थी। उस विधेयक के पारित होने के बाद माना जा रहा था कि देश में बीमा व्यवसाय फलेगा-फूलेगा और लाखों लोगों को रोजगार मिलेगा लेकिन कुछ खास नहीं हुआ। अब सरकार ने बीमा नियामक को कहा है कि वह प्रीमियम की ऊंची दरों के बारे में जांच करे और बिना क्लेम वाले ग्राहकों का बीमा अनाप-शनाप ढंग से बढ़ाने के मामले को देखे।

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