असल में शराब की लत के शिकार गरीब तबके के लोग अक्सर सस्ती शराब की तलाश में रहते हैं। पंजाब ही नहीं पूरे देश में अवैध रूप से शराब बनाने और बेचने का काम बड़े पैमाने पर होने की वजह भी यही है। इसे उन इलाकों में चोरी-छिपे बेचा जाता है, जहां कम आय वर्ग के लोग रहते हैं, क्योंकि यह सस्ती पड़ती है। लेकिन, कई बार लोगों की जान देकर इसकी कीमत चुकानी पड़ती है। कच्ची शराब बनाने के लिए यूरिया और दूसरे खतरनाक रसायनों का इस्तेमाल भी किया जाता है। इन रसायनों और दूसरे पदार्थों को मिलाकर जब शराब बनाई जाती है तो इथाइल अल्कोहल की जगह मिथाइल अल्कोहल बन जाता है जो जानलेवा साबित होता है। ऐसी त्रासदियां अवैध शराब का उत्पादन और बिक्री रोकने को लेकर सरकार द्वारा बरती जा रही लापरवाही और उदासीनता को भी उजागर करती हैं। असल में शराब माफिया और पुलिस-आबकारी विभाग की मिलीभगत के चलते कच्ची शराब की भट्टियों की अनदेखी की जाती है। जब तक इस गठजोड़ को नहीं तोड़ा जाएगा, तब तक नकली व जहरीली शराब के उत्पादन का खतरा बना रहेगा। देश में अवैध शराब का उत्पादन तो रुकना ही चाहिए, सभी तरह के नशे की रोकथाम भी आवश्यक है। देश में कभी नशे के खिलाफ सरकारी और गैर सरकारी अभियान चला करते थे, लेकिन अब ये कहीं नजर नहीं आते। शराब जैसे नशीले पदार्थों के प्रचार अभियानों ने तो लोगों में इसके प्रति आकर्षण बढ़ाया है। युवा वर्ग में तो यह स्टेटस सिंबल बन गया है। नतीजा यह है कि आजकल शराब के ठेकों पर भीड़ नजर आती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गत वर्ष जारी अपनी रिपोर्ट ‘ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट ऑन अल्कोहल एंड हेल्थ एंड ट्रीटमेंट ऑफ सब्सटेंस यूज डिसऑर्डर’ में इस तथ्य को भी उजागर किया था कि शराब का सेवन, चाहे कम मात्रा में ही क्यों न किया जाए, स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर सकता है। हालत यह है कि भारत में एक लाख मौतों में से शराब से 38.5 मौतें हो रही हैं। यह संख्या चीन से दोगुनी से भी अधिक है। जब असली शराब ही नुकसानदेह है तो गलत तरह से तैयार शराब तो खतरनाक होगी ही। इसलिए अवैध शराब की रोकथाम के साथ शराब और दूसरे नशीले पदार्थों के खिलाफ लगातार अभियान की जरूरत है, ताकि नशा मुक्त समाज बनाने का महात्मा गांधी का सपना साकार हो सके।