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शिक्षक पढ़ाते ही नहीं, जीवन जीने की कला भी सिखाते हैं

वासुदेव देवनानी, विधानसभा अध्यक्ष राजस्थान

जयपुरSep 05, 2025 / 03:15 pm

Shaily Sharma

शिक्षक दिवस ज्ञान, संस्कृति, राष्ट्र निर्माण और आत्म निरीक्षण का पर्व है और इस दिवस का सही संदेश सही अर्थों में शिक्षकों का सम्मान करना है। यह केवल एक दिन की औपचारिकता न होकर जीवनभर की कृतज्ञता होनी चाहिए। शिक्षक केवल पाठ्यक्रम नहीं पढ़ाते, बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखाते हैं। वे बच्चों के भीतर आत्मविश्वास जगाते हैं, प्रश्न पूछने और सोचने की क्षमता विकसित करते हैं। समाज उनसे यह अपेक्षा करता है कि वे आने वाली पीढ़ी को सिर्फ नौकरी पाने योग्य ही न बनाएं, बल्कि एक जिम्मेदार, संवेदनशील और सृजनशील नागरिक भी बनाएं।
मैं स्वयं एक शिक्षक रहा हूं, इसलिए शिक्षा के महत्त्व और इसके मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को भी भलीभांति समझता हूं। मेरा हमेशा यह मानना रहा है कि शिक्षा में स्थानीय और राष्ट्रीय नायकों को उचित स्थान मिलना चाहिए। इस भावना को ध्यान में रखते हुए मैंने अपने शिक्षा मंत्री कार्यकाल के दौरान राजस्थान में लगभग 200 ऐतिहासिक और राष्ट्रीय विभूतियों को शिक्षा पाठ्यक्रम में जोड़ा था, ताकि विद्यार्थियों का दृष्टिकोण केवल विदेशी विचारों तक सीमित न रहकर भारतीय महापुरुषों से भी समृद्ध हो।
भारत में शिक्षा को सदैव राष्ट्र निर्माण का मूल आधार माना गया है। समय-समय पर शिक्षा की नीतियों में बदलाव होते रहे हैं, किंतु नई शिक्षा नीति 2020 (एनईपी-2020) ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को एक नई दिशा दी है। यह नीति केवल पाठ्यक्रम या परीक्षा सुधार तक सीमित नहीं, बल्कि विद्यार्थियों के समग्र विकास और भविष्य निर्माण पर केंद्रित है। इस नीति को सफल बनाने में सबसे बड़ी भूमिका शिक्षकों की है। यदि शिक्षक नीति की आत्मा को समझकर उसे व्यवहार में लाएंगे, तभी इसका वास्तविक लाभ विद्यार्थियों और समाज तक पहुंचेगा। इसलिए आज के संदर्भ में शिक्षकों से अपेक्षाएं और भी महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं।
नई शिक्षा नीति का उद्देश्य विद्यार्थी को केवल नौकरी के लिए तैयार करना नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में सक्षम बनाना है। इससे अपेक्षा है कि शिक्षक केवल विषय-ज्ञान देने तक सीमित न रहें, बल्कि कला, विज्ञान, खेल, कौशल और नैतिक शिक्षा को जोड़कर विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास करें। नई शिक्षा नीति ने छात्रों में रटने की प्रवृत्ति को समाप्त करने पर बल दिया है। शिक्षकों से अपेक्षा है कि वे छात्रों को प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित करें, उन्हें सोचने, तर्क करने और नवीन प्रयोग करने की दिशा दें। इस प्रकार छात्र जीवन की समस्याओं का समाधान खोजने में सक्षम बनेंगे।
नई शिक्षा नीति के अनुसार प्रारंभिक स्तर पर शिक्षा मातृभाषा या स्थानीय भाषा में देने पर जोर दिया गया है। शिक्षकों से अपेक्षा है कि वे अपनी स्थानीय भाषा और संस्कृति को शिक्षा का आधार बनाएं, ताकि बच्चे अपनी जड़ों से जुड़े रहें। साथ ही, वे उन्हें वैश्विक भाषाओं और ज्ञान से भी परिचित कराएं। डिजिटल शिक्षा आज के समय की आवश्यकता है। शिक्षकों से यह अपेक्षा भी है कि वे स्मार्ट क्लास, ऑनलाइन माध्यम, वर्चुअल लैब और ई-लर्निंग संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग करें। वे स्वयं तकनीकी रूप से दक्ष हों और छात्रों को भी बदलते तकनीकी वातावरण के अनुरूप तैयार करें। नई शिक्षा नीति अनुसंधान और नवाचार आधारित शिक्षा की पैरवी करती है। इसलिए शिक्षकों से अपेक्षा है कि वे विद्यार्थियों को केवल पुस्तकीय ज्ञान तक न बांधकर उन्हें प्रयोग, प्रोजेक्ट और रचनात्मक गतिविधियों के लिए प्रेरित करें।
नई नीति में शिक्षकों के लिए निरंतर प्रशिक्षण और क्षमता विकास पर भी बल दिया गया है। शिक्षकों से अपेक्षा है कि वे समय के साथ स्वयं भी सीखते रहें। जो शिक्षक नए ज्ञान और तकनीक को आत्मसात नहीं करेगा, वह विद्यार्थियों को तैयार नहीं कर पाएगा। नई शिक्षा नीति के अनुरूप शिक्षक की भूमिका और अधिक व्यापक हो गई है। अब वे केवल अध्यापक नहीं, बल्कि मार्गदर्शक, प्रेरणास्रोत, नवाचारक और मूल्यनिष्ठ राष्ट्र निर्माता हैं। भारत के भविष्य की दिशा इस बात पर निर्भर करेगी कि हमारे शिक्षक कितने समर्पित, प्रशिक्षित और दूरदर्शी हैं। वास्तव में, यदि शिक्षक नई शिक्षा नीति की भावना को अपनाकर अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें तो भारत शिक्षा के क्षेत्र में पुनः विश्वगुरु बनने की दिशा में अग्रसर हो सकता है।

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