दिल्ली में दस लाख से अधिक आवारा कुत्ते…
हमारी संस्कृति में पशु-पक्षियों की रक्षा के लिए हर पशु-पक्षी को किसी न किसी देवता के साथ बिठाया गया है, ताकि लोग उनका भी सम्मान करें। हमारा आंदोलन भी कुत्तों को सम्मान दिलाने के लिए है क्योंकि यदि ये इसी तरह से काटते रहे तो लोग इनसे नफरत करने लगेंगे। हमारे बचपन में घर-घर यह परंपरा थी कि पहली रोटी गाय को और आखिरी रोटी कुत्ते को दी जाती थी। उस समय गली-मोहल्ले में मुश्किल से एक-दो कुत्ते होते थे, जो सबके परिचित थे और किसी के लिए खतरा नहीं थे। लेकिन आज गली-कूचों में झुंड के झुंड कुत्ते घूमते हैं और आए दिन उनके द्वारा किए हमले की खबरें आती हैं। दिल्ली में ही आज करीब दस लाख आवारा कुत्ते हैं। अगर आज से भी नसबंदी और वैक्सीनेशन पूरी रफ्तार से शुरू हो जाए तो भी इन दस लाख कुत्तों का क्या होगा, जो सड़कों पर हैं। ये इसी तरह से क्या काटते रहेंगे और आम जनता भय के साये में जीती रहेगी?मौत का बढ़ता ग्राफ; रेबीज से जीने की उम्मीद कम
हर साल लाखों लोग कुत्तों के हमलों का शिकार होते हैं। हमारे देश में रेबीज जैसी बीमारी से मौतें होती हैं। बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों के लिए यह सबसे बड़ा खतरा है। हमारे देश में रेबीज जैसी भयावह बीमारी से हर साल लोग मारे जाते हैं। जिसे रेबीज हो जाए उसकी जीने की बहुत कम उम्मीद रहती है।कुत्ता प्रेमियों की असली चिंता- ‘विदेशी फंड’
ज्यादातर कुत्ता प्रेमियों ने अपने एनजीओ बना रखे हैं जिनमें ये विदेशी फंड लेते हैं, इनकी असली चिंता ये है। दिल्ली में एमसीडी ने इन जैसी 20 एनिमल वेलफेयर एसोसिएशन को स्टरलाइजेशन-वैक्सीनेशन का काम दे रखा था। इन्होंने ही यह काम ठीक से नहीं किया। इन एसोसिएशन ने ना तो कोई शेल्टर होम बनाएं, न ही वे इन कुत्तों को गोद लेने के लिए तैयार हैं और न ही जिनको ये कुत्ते काटते हैं उनकी कोई मदद करते हैं।उनके मुताबिक देशभर में 1.5 करोड़ आवारा कुत्ते हैं। देशभर में 37 लाख से ज्यादा डॉग बाइट के केस सिर्फ 2024 में सामने आए, इसमें से 54 लोगों की मौत रेबीज से मौत हो चुकी है।