श्रुत पंचमी : तीर्थंकर महावीर की दिव्यदेशना लिपिबद्ध करने का दिन
भाग चन्द जैन मित्रपुरा, अध्यक्ष अखिल भारतीय जैन बैंकर्स फोरम, जयपुर


आज से 1868 वर्ष पूर्व ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी के दिन तीर्थंकर महावीर की दिव्य वाणी को श्रवण यानी श्रुत के आधार पर षट्खण्डागम ग्रंथ के रूप में लिपिबद्ध कर भावी पीढ़ी के लिए सुरक्षित किया था। अत: इस दिन श्रुत पंचमी के नाम से जिनवाणी उत्सव मनाया जाता है। यह ग्रन्थ प्राकृत भाषा में लिपिबद्ध है। अत: इस दिन को ‘प्राकृत भाषा दिवस’ के रूप में भी मनाते है। यह दिवस जन—जन तक आगम ज्ञान पहुंचाने का दिन है।
तीर्थंकरों के द्वारा केवल ज्ञान प्राप्ति उपरांत उनकी दिव्य ध्वनि अठारह महाभाषाओं और सात सौ लघुभाषाओं में प्रवाहित होती रहती है। समवशरण में उपस्थित सभी गति के जीव अपनी अपनी भाषा में इसे समझ लेते है।
24वें तीर्थंकर महावीर की वाणी श्रुत रूप में रही जो अनुबंध केवली गौतम स्वामी, सुधर्म स्वामी, जम्बू स्वामी से लेकर अंतिम श्रुतकेवली भद्रभाहू स्वामी तक निरंतर प्रवाहमान होती रही। वर्षों तक उनकी दिव्य देशना आचार्यों, मुनियों, योग्यजनों द्वारा याददाश्त के आधार पर जनमानस तक पहुंचती रही। इनके पश्चात् क्षयोपशम ज्ञान की मन्दता बढ़ने लगी, आचार्यों की स्मृति क्षीण होने लगी एवं अंगों एवं पूर्व ज्ञान का ह्रास होने लगा।
भगवान महावीर के निर्वाण के 683 वर्ष व्यतीत होने पर अंगों एवं पूर्व के शेष ज्ञान के भी लुप्त होने एवम् कालान्तर में शास्त्रों के घटते ज्ञान से चिंतित होकर आचार्य धरसेन ने बचे हुए ज्ञान को लिपिबद्ध कराने हेतु महिमा नगरी में हो रहे मुनि सम्मेलन से दो योग्य मुनियों आचार्य पुष्पदंत और आचार्य भूतबलि को अपने आश्रय स्थल गुजरात में गिरनार पर्वत स्थित चन्द्रगुफा में बुलाया एवं अपनी स्मृति में सुरक्षित संपूर्ण श्रुत ज्ञान उन्हें प्रदान किया। परिणामत: शुरुआत में आचार्य पुष्पदंत ने प्रथम खंड एवं शेष पांच खंड आचार्य भूतबलि ने पूर्ण किए एवं छह खंडों के ‘षट्खण्डागम’ ग्रन्थ की रचना की। यह ग्रन्थ दिगम्बर आचार्य धरसेन के आगम के मौखिक उपदेशों पर आधारित है, जिसे ताड़पत्र पर लिपिबद्ध किया गया।
ईस्वी सन् 156 में जेष्ठ शुक्ला पंचमी के दिन चतुर्विद संघ एवं देवों ने इस महान ग्रन्थ की पूजा-अर्चना की एवं भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित किया गया। तभी से यह तिथि ‘श्रुत पंचमी’ के नाम से विख्यात हुई।
षट्खण्डागम (छ: भागों वाला आगम ग्रन्थ) दिगम्बर सम्प्रदाय का सर्वोच्च और सबसे प्राचीन पवित्र धर्मग्रंथ है। षट्खण्डागम के प्रथम तीन खण्ड कर्म दर्शन की व्याख्या आत्मा के दृष्टिकोण से करते है, जो कि बंधन का कारक है। अंतिम तीन खण्ड कर्म की प्रकृति और सीमाओं की व्याख्या करते है। पंचपरमेष्ठी आराधक णमोकार महामंत्र षट्खण्डागम ग्रन्थ का मंगलाचरण है।श्रुत पंचमी का संदेश है कि ज्ञान की रक्षा और प्रसार करना हमारा कर्तव्य है। यह दिन हमें आचार्य धरसेन, आचार्य पुष्पदंत और आचार्य भूतबलि की दूरदृष्टि और त्याग की याद दिलाता है, जिन्होंने तीर्थंकर महावीर की वाणी को लिपिबद्ध करने के लिए अपना जीवन समर्पित किया। श्रुत पंचमी के दिन शास्त्रों की साफ सफाई की जाती है, शास्त्रों की पूजा की जाती है, जिनवाणी की रथयात्रा निकाली जाती है एवं महावीर की वाणी को जन जन तक पहुंचाने का प्रयास किया जाता है।
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