अकेले इसी सांगारेड्डी जिले में 2024 के शुरुआती चार महीनों में 25 श्रमिकों की मृत्यु हो चुकी है। घायल या मृत्यु के करीब पहुंचे श्रमिकों की वास्तविक संख्या का अनुमान तक संभव नहीं। लेकिन सांगारेड्डी कोई अकेला उदाहरण नहीं, ऐसी घटनाएं पूरे देश में घट रही हैं। अब पुणे के बाहरी इलाके में स्थित पिरांगुट औद्योगिक क्षेत्र की 7 जून की घटना पर गौर करें। यहां एक रासायनिक फैक्ट्री में आग लगने से 18 श्रमिकों की मौत हो गई, जिनमें 15 महिलाएं थीं।
कुछ श्रमिक कार्यकर्ताओं की पड़ताल में यह सामने आया कि इन श्रमिकों को यह भी नहीं बताया गया था कि वे खतरनाक रसायनों के साथ काम कर रहे हैं। रसायनों की असली पहचान को छिपाकर कोड दिए गए थे। महिला श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी से भी कम भुगतान किया जा रहा था। यह फैक्ट्री 2012 से चल रही थी, लेकिन विधिवत पंजीकरण 2020 में हुआ। यहां तक कि इसे बिना किसी निरीक्षण के ISO-9001 सर्टिफिकेशन भी मिल चुका था।
यह ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ नीति का परिणाम नहीं कहा जा सकता। इस नीति के तहत आत्म-प्रमाणन की व्यवस्था लागू हुई है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि खतरनाक उद्योगों में निरीक्षण की जिम्मेदारी से पूरी तरह मुक्ति मिल गई है। इसके पीछे लालच, मुनाफाखोरी, और जानबूझकर सेफ्टी सेंसर बंद कर देना या उत्पादन लक्ष्य पाने के लिए मशीनों की गति बढ़ा देना, जैसे सुरक्षा उपायों को निष्क्रिय कर देने जैसे गंभीर कारण हैं।
सौभाग्य से इस वर्ष के आर्थिक सर्वेक्षण में कार्यस्थल सुरक्षा का मुद्दा रेखांकित किया गया है। इसमें साफ कहा गया है कि व्यावसायिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य कोई बोझ नहीं, बल्कि एक रणनीतिक निवेश है। ऑटोमोबाइल व कलपुर्जा उद्योग में श्रमिकों की सुरक्षा के लिए काम करने वाली संस्था ‘सेफ इन इंडिया’ का आकलन है कि सुरक्षा की उपेक्षा से भारत की जीडीपी का 4 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है।
वैश्विक श्रम उत्पादकता रैंकिंग में भारत 133वें स्थान पर है, जो चीन, वियतनाम और मैक्सिको से काफी पीछे है। इसका सीधा संबंध सुरक्षा मानकों की कमी और खराब कार्य परिस्थितियों से है। व्यावसायिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य में निवेश केवल श्रमिक और उनके परिवार के जीवन को ही बेहतर नहीं बनाता, बल्कि उत्पादकता, मनोबल और प्रबंधन में विश्वास भी बढ़ाता है। इससे अनुपस्थिति, इलाज पर खर्च और गैर-अनुपालन के दंड कम होते हैं।
बांग्लादेश का उदाहरण भी उल्लेखनीय है। 2013 में राणा प्लाजा की आठ मंजिला इमारत गिरने से 1134 लोगों की मौत हुई। इसके बाद वहां ‘अकॉर्ड ऑन फायर एंड बिल्डिंग सेफ्टी’ लागू हुआ, जिसके तहत 14 लाख श्रमिकों को प्रशिक्षण मिला। इससे बांग्लादेश के परिधान निर्यात में इतनी तेजी आई कि उसने भारत और वियतनाम को भी पीछे छोड़ दिया। चिली और कोस्टारिका ने भी इस सुधार से तेज उत्पादकता वृद्धि पाई।
आर्थिक सिद्धांत भी कहता है कि श्रमिकों की सुरक्षा में निवेश करने से उत्पादकता, प्रेरणा, निष्ठा और उपस्थिति में वृद्धि होती है। लेकिन इसके लिए प्रबंधन की स्पष्ट प्रतिबद्धता दिखनी अत्यंत आवश्यक है। व्यावसायिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य में निवेश के अनुपालन को प्रोत्साहन आधारित बनाना होगा। एनजीओ के सहयोग से श्रमिकों को जागरूक किया जाना चाहिए।
अंततः याद रखें कि श्रमिक सुरक्षा केवल आर्थिक लाभ का साधन नहीं, बल्कि यह नैतिक और मानवीय प्रतिबद्धता भी है।