चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिनहुआ ने 2018 में एआइ आधारित वर्चुअल न्यूज एंकर पेश किया, जिसने पत्रकारिता जगत को झटका दिया। यह न्यूज एंकर इंसानों की तरह खबरें पढ़ सकता है और लाइव प्रसारणों को देखकर खुद को बेहतर बना सकता है। हाल के वर्षों में भारत सहित कई देशों में ऐसे प्रयोग हुए हैं। अब तो एआई इतनी सुलभ हो गई है कि यूट्यूब पर सामान्य चैनलों पर भी ऐसे एंकर दिखाई देने लगे हैं। इससे संस्थानों को लाभ है, क्योंकि अधिकांश काम स्वचालित हो सकते हैं और इंसानी न्यूज रीडर की आवश्यकता खत्म हो जाती है। ऐसे एंकर चौबीसों घंटे काम कर सकते हैं और विभिन्न रूपों में प्रस्तुति दे सकते हैं। जाहिर है, एआइ पत्रकारिता का चेहरा और तौर-तरीके बदल रही है।
जनरेटिव एआइ के आने से कंटेंट निर्माण का काम भी काफी हद तक स्वचालित हो सकता है। पत्रकारिता से जुड़ी कई गतिविधियों समाचार संकलन, ध्वनि को ट्रांसक्राइब करना (लिखना),अनुवाद करना, सारांश और शीर्षक बनाना, टेक्स्ट, वीडियो, ऑडियो, और चित्र जैसे कंटेंट बनाना, संपादन, कंटेंट मैनेजमेंट, और प्रस्तुति डेटा विश्लेषण, कंटेंट और विज्ञापनों को कस्टमाइज करना, फैक्ट-चेकिंग आदि में एआइ की भूमिका बढ़ रही है। प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और वेब सहित जनसंचार के सभी माध्यमों में एआइ का दखल आज नहीं तो कल निश्चित है। यह दखल अवसर और चुनौतियां दोनों लाएगा। तथ्यों की आलोचनात्मक समीक्षा, पूर्वाग्रहों को समझना और समाचारों की विश्वसनीयता सुनिश्चित करना जैसी चुनौतियां अभी बनी रहेंगी।
एआइ-जनित सामग्री में इंसानी संवेदनाओं का अभाव हो सकता है, लेकिन सवाल यह है कि क्या हम दर्शक-पाठक स्वयं संवेदनाओं से दूरी नहीं बनाते जा रहे हैं? पिछले दो दशकों में मीडिया जिस तरह बदला है, उसमें संवेदनाओं का अनुपात बढ़ा है या घटा, आप ही बताइए। तकनीकी तथ्य यह है कि एआइ-जनित कंटेंट में भी भावनाओं और संवेदनाओं का तत्त्व शामिल होने लगा है और यह आगे और बढ़ेगा।
एआइ-जनित कंटेंट की स्वाभाविकता और प्रामाणिकता का सवाल बरकरार है। इसके जरिए फेक न्यूज, डीपफेक और दुष्प्रचार फैलाना आसान हो गया है। दूसरी ओर, एआइ इन समस्याओं के समाधान में भी मदद कर रही है। एआइ-जनित कंटेंट को पहचानना और फेक न्यूज का पता लगाना अब मुश्किल नहीं है, जिसमें फुल फैक्ट और क्लेमबस्टर जैसे रिवर्स इंजीनियरिंग टूल उपयोगी हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पत्रकारिता का विकल्प नहीं बनेगा, लेकिन यह एक ऐसी हकीकत है, जो पत्रकारिता को अन्य पेशों की तरह बदल देगी। एक दशक पहले छोटे अखबार या बेसिक टीवी चैनल शुरू करना छोटे व्यवसायियों के लिए असंभव था। लेकिन इंटरनेट और डिजिटल तकनीकों ने प्रिंट, ऑडियो और वीडियो माध्यमों को सबकी पहुंच में ला दिया। एआई इस प्रक्रिया को और आगे ले जा सकता है। मीडिया के बदलने की प्रक्रिया जारी रहेगी, और इसकी रफ्तार शायद और बढ़े। जो समय की नब्ज पकड़ेगे, वे लाभ में रहेंगे—मीडिया संस्थान भी और मीडियाकर्मी भी। जो इसे नकारेंगे, उन्हें कुछ साल बाद अहसास होगा कि क्या कुछ पीछे छूट गया।