संपादकीय : जीएसटी से जुड़े फैसले कई मायनों में अहम
भारत में अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में किया गया बड़ा बदलाव नई आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए एक बेहतर कदम है। वैसे तो नई कर प्रणाली यानी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के स्लैब में वर्ष 2017 में इसके लागू होने के बाद से कई परिवर्तन किए गए हैं लेकिन, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता […]


भारत में अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में किया गया बड़ा बदलाव नई आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए एक बेहतर कदम है। वैसे तो नई कर प्रणाली यानी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के स्लैब में वर्ष 2017 में इसके लागू होने के बाद से कई परिवर्तन किए गए हैं लेकिन, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में जीएसटी परिषद ने बुधवार को जो फैसले किए, वे कई मायनों में अहम कहे जाएंगे। अमरीका में डॉनल्ड ट्रंप के दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद से ही वैश्विक व्यापार में बड़ी उथल-पुथल चल रही है। ट्रंप ने खासतौर पर भारत को निशाना बनाया है, जिसके कारण कारोबारी तनाव में हैं और वैश्विक आपूर्ति शृंखला प्रभावित होने की आशंका है। ऐसे में देश की अर्थव्यवस्था पर पडऩे वाले असर को देखते हुए टैक्स स्लैब में सुधार काफी जरूरी थे। वैसे भी चार तरह के टैक्स स्लैब के कारण जीएसटी प्रणाली का मूल उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा था। उम्मीद की जा रही है कि टैक्स में छूट से घरेलू खपत बढ़ेगी जिससे ‘ट्रंप टैरिफ’ से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकेगा।
सरकार ने जीएसटी प्रणाली में सुधार करते हुए अब सिर्फ दो तरह के स्लैब बरकरार रखे हैं, जिसे 22 सितंबर से लागू किया जाएगा। जीएसटी परिषद ने आवश्यक वस्तुओं को करमुक्त करने के साथ कई वस्तुओं पर टैक्स घटाकर घरेलू उपभोक्ताओं, किसानों और छोटे कारोबारियों को काफी राहत दी है। पहले चार तरह के टैक्स स्लैब थे- 5 फीसदी, 12 फीसदी, 18 फीसदी और 28 फीसदी। अब सिर्फ 5 और 18 फीसदी वाला ही प्रभावी रहेगा। पहले जिन वस्तुओं पर 12 फीसदी और 28 फीसदी का टैक्स लगता था उसे अब कम स्लैब के दायरे में लाया गया है जो आप उपभोक्ताओं के लिए बड़ी राहत देने वाली बात है। खाने-पीने की चीजों और जीवन रक्षक दवाओं पर टैक्स पूरी तरह हटा दिया गया है। लग्जरी और हानिकारक वस्तुओं के लिए 40 फीसदी का एक स्पेशल टैक्स स्लैब जरूर बनाया गया है, जिसे अनुचित नहीं कहा जा सकता।
अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि 27 अगस्त से लागू 50 फीसदी ‘ट्रंप टैरिफ’ के कारण भारत के 60.2 अरब डॉलर के निर्यात पर असर पड़ा है। यह अमरीका भेजे जाने वाले माल का 55 फीसदी और भारत के कुल निर्यात का 18 फीसदी है। सबसे ज्यादा असर कपड़ा, सी-फूड, रत्न व आभूषण और चमड़ा क्षेत्र पर पड़ा है। लघु और मध्यम श्रेणी के ये उद्योग-व्यापार श्रम पर अधिक निर्भर हैं। इन क्षेत्रों के तनाव में आने का असर गरीब परिवारों पर पडऩे की आशंका है। अनुमान है कि वित्त वर्ष 2026 की जीडीपी में 0.4 फीसदी से 0.6 फीसदी तक कमी हो सकती है। त्योहारी सीजन और बिहार चुनाव से ठीक पहले यह फैसला न सिर्फ कारोबारी बल्कि, दूसरे कारणों से भी अनुकूल माना जाएगा। घरेलू मांग मजबूत होने से संबंधित उद्योगों को बाहरी झटकों से बचाया जा सकेगा।
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