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सम्पादकीय : दंड प्रणाली में बदलाव की दिशा में सराहनीय पहल

केन्द्र सरकार की ओर से लाए जा रहे जन विश्वास (संशोधन) विधेयक के माध्यम से छोटे अपराधों के लिए जेल की सजा के बजाय जुर्माने के प्रावधान को क्रांतिकारी कदम ही कहा जाएगा।

जयपुरAug 20, 2025 / 12:50 pm

arun Kumar

देश की जेलों में क्षमता से बीस से तीस प्रतिशत अधिक कैदी हैं। इनमें से भी अधिकांश ऐसे हैं जो छोटे-मोटे अपराध के लिए जेल की सजा काट रहे हैं। केन्द्र सरकार की ओर से लाए जा रहे जन विश्वास (संशोधन) विधेयक के माध्यम से छोटे अपराधों के लिए जेल की सजा के बजाय जुर्माने के प्रावधान को क्रांतिकारी कदम ही कहा जाएगा। ऐसा इसलिए भी क्योंकि राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के अनुसार, जुलाई 2023 तक 4.4 करोड़ मामले लंबित थे, जिनमें 3.3 करोड़ आपराधिक मामले थे। इस विधेयक के कानून के रूप में अस्तित्व में आने पर अदालतों पर यह बोझ बीस से तीस प्रतिशत तक कम होने की उम्मीद है। इसका उद्देश्य पुराने और अप्रासंगिक कानूनों को हटाकर नागरिकों और व्यापारियों पर मुकदमों का अनावश्यक बोझ कम करना भी है।
विधेयक के प्रावधानों में खास बात यह भी है कि 76 मामलों में पहली बार उल्लंघन पर केवल चेतावनी या सलाह दी जाएगी। भारत में कई छोटे अपराधों, जैसे भारतीय वन अधिनियम, 1927 के तहत जंगल में अतिक्रमण, लकड़ी काटने या नुकसान पहुंचाने, बिना परमिट वाहन चलाने आदि पर 6 माह की जेल और 10,000 रुपए जुर्माना हो सकता है। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत आपत्तिजनक संदेश भेजने पर 2 साल तक की जेल और 1 लाख रुपए जुर्माना लग सकता है। जन विश्वास विधेयक इनमें से जेल की सजा को हटाकर केवल जुर्माने का प्रावधान करता है, जिससे लाखों लोग जेल जाने से बच सकते हैं। नए प्रावधानों से हर साल अनुमानित 5-10 लाख लोग जेल जाने से बच सकते हैं, जिससे जेलों पर अतिरिक्त भार 15-20 प्रतिशत तक कम हो सकता है। वैसे भी जेल जाने के बाद 60-70 प्रतिशत लोग सामाजिक रूप से अपराधी के रूप में देखे जाते हैं, जिससे उनकी शादी, करियर और सामाजिक प्रतिष्ठा पर गहरा असर पड़ता है। छोटे अपराधों के कारण नौकरी या विदेश यात्रा में बाधा भी उत्पन्न होती है। विधेयक पारित होने पर ये सामाजिक और आर्थिक बाधाएं तो कम होंगी ही, लोगों को सुधरने का मौका भी मिलेगा। दुनिया के दूसरे कई देशोंं में छोटे अपराधों के लिए जेल की सजा को कम करने और सुधारात्मक उपायों पर जोर दिया जाता है।
स्विट्जरलैंड और नॉर्वे जैसे देशों में छोटे अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा, जुर्माना या परामर्श जैसे विकल्प अपनाए जाते हैं। नॉर्वे की जेलें पुनर्वास पर केंद्रित हैं, जहां कैदियों को शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण और मनोवैज्ञानिक सहायता दी जाती है। जन विश्वास विधेयक, विश्वास आधारित शासन को भी बढ़ावा देगा। देखा जाए तो यह विधेयक भारतीय न्याय प्रणाली को आधुनिक और मानवीय बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है, जो न केवल नागरिकों का जीवन सुगम बनाएगा, बल्कि जेलों और अदालतों पर बोझ कम कर समाज में सकारात्मक बदलाव भी लाएगा।

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