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सम्पादकीय : त्वरित कार्रवाई हो यौन उत्पीड़न की शिकायतों पर

ओडिशा के बालासोर में यौन उत्पीडऩ की शिकायत पर कार्रवाई नहीं होने से क्षुब्ध छात्रा के आत्मदाह करने व कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले के एक कॉलेज में दो शिक्षकों सहित तीन लोगों द्वारा एक छात्रा के यौन शोषण की घटनाएं इस चिंता को और बढ़ाने वाली है।

जयपुरJul 16, 2025 / 08:35 pm

ANUJ SHARMA

वाकई यह शर्मनाक और चिंताजनक है कि शिक्षण संस्थान तक छात्राओं के लिए सुरक्षित नहीं है। ओडिशा के बालासोर में यौन उत्पीडऩ की शिकायत पर कार्रवाई नहीं होने से क्षुब्ध छात्रा के आत्मदाह करने व कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले के एक कॉलेज में दो शिक्षकों सहित तीन लोगों द्वारा एक छात्रा के यौन शोषण की घटनाएं इस चिंता को और बढ़ाने वाली है। इस तरह की घटनाएं आए दिन सामने आती रहती हैं और कई मामले तो सामने तक नहीं आ पाते। विडम्बना यह भी है कि ऐसे मामले सामने आने पर पुलिस-प्रशासन की सक्रियता थोड़े समय तो नजर आती है लेकिन बाद में वही सुस्ती का आलम बन जाता है। बालासोर के मामले में विरोध प्रदर्शन जारी है, जांच के आदेश भी हुए हैं लेकिन छात्रा की शिकायत पर समय रहते कार्रवाई हो जाती तो उसके लिए यह घातक कदम उठाने की नौबत नहीं आती।
इस तरह की घटनाएं यह भी बताती है कि शिक्षा के मंदिरों में सुरक्षा के मामलों में जिम्मेदार घोर लापरवाही बरत रहे हैं। बालासोर कॉलेज की छात्रा तो कई सप्ताह से अपने विभागाध्यक्ष की शिकायत तक कर रही थी। जिम्मेदारों की अनसुनी से व्यथित होकर हताशा में वह आत्मदाह करने को मजबूर हो गई। दूसरी घटना में बेंगलूरु के दो शिक्षक जिस तरह से हैवान बन गए वह तो शिक्षक जैसे पवित्र पेशे को कलंकित करने वाला है। बेंगलूरु में नोट्स के बहाने छात्रा को बुलाकर शिक्षकों द्वारा रेप करने का यह मामला हो या फिर आइआइएम, कोलकाता के छात्रावासों में यौन उत्पीडऩ का मामला शिक्षा मंदिरों की पवित्रता भी भंग करने वाले हैं। हैरत की बात यह है कि यौन उत्पीडऩ की अधिकांश शिकायतों को जिम्मेदार रफा-दफा करने में जुट जाते हैं। बड़ा सवाल यह भी है कि स्कूल-कॉलेजों में छात्राओं से होने वाली बदसलूकी की शिकायतों पर आखिर गौर क्यों नहीं किया जाता? आखिर क्यों किसी छात्रा को अपनी बात जिम्मेदारों तक पहुंचाने के लिए आत्मदाह जैसा जानलेवा कदम उठाने को क्यों मजबूर होना पड़ता है ? आखिर क्या कारण थे कि बेंगलूरु में रेप की शिकार छात्रा कॉलेज में ही अपनी बात नहीं कह पाई। हमारे शैक्षिक संस्थानों में इस तरह की बढ़ती वारदातें सचमुच चिंताजनक तो हैं ही, कई सबक भी देती हैं। यह सुनिश्चित करना होगा कि हर शैक्षिक संस्थान में यौन उत्पीडऩ के खिलाफ सख्त नियम-कायदे बनें। यह भी जरूरी है कि यौन उत्पीडऩ की शिकायतों की सुनवाई की व्यवस्था कागजों में ही नहीं होनी चाहिए। ऐसा शिकायत निवारण तंत्र बनाना जरूरी है जो बिना किसी हस्तक्षेप के अपना काम करे। साथ ही ऐसे मामलों की सुनवाई भी त्वरित होनी चाहिए ताकि अभियुक्तों को सजा के मुकाम तक पहुंचाया जा सके। शिक्षण संस्थाओं में भी शिक्षक व प्रबंधन वर्ग को संवेदनशीलता और जिम्मेदारी का प्रशिक्षण देने की जरूरत है। यौन उत्पीडऩ की किसी भी शिकायत को हल्के में लेने का मतलब अपराधियों के हौसले बढ़ाना ही है।

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