छत्तीसगढ़ समेत देश को नक्सल समस्या से मुक्त करने का लक्ष्य केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तय कर रखा है। 31 मार्च 2026 की इस डेडलाइन के मद्देनजर छत्तीसगढ़ सहित नक्सल हिंसा प्रभावित राज्यों में बड़ी मजबूती से नक्सल ऑपरेशन चलाए जा रहे हैं। हालांकि महाराष्ट्र, ओडिशा, तेलंगाना और मध्यप्रदेश में नक्सली समस्या उतनी नहीं है, जितनी छत्तीसगढ़ में है। इसका एक कारण यह भी माना जा सकता है कि बस्तर का दुर्गम इलाका जहां शासन-प्रशासन और विकास की पहुंच नहीं हो पा रही थी, वे उनके लिए सुरक्षित पनाहगाह बनते चले गए। एक तरह से बस्तर नक्सलियों का गढ़ बन गया। सरकार ने नक्सलियों के इस गढ़ को भेदने का संकल्प लिया। प्रदेश में विष्णु देव साय के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद केंद्र और राज्य सरकार ने डबल इंजन की सरकार ने नक्सल समस्या को मिशन मोड पर लिया। इसके मद्देनजर नक्सल हिंसा प्रभावित इलाकों में विकास की कई योजनाएं चलाई गईं। माओवादियों को समाज की मुख्यधारा से जोडऩे के लिए राज्य सरकार ने नई नक्सल समर्पण व पुनर्वास नीति बनाई। साथ ही साथ, नक्सलियों के खिलाफ मोर्चेबंदी भी की। ऐसे इलाकों में बड़ी संख्या में सुरक्षाबलों के कैंप स्थापित किए जा रहे हैं। एक के बाद एक नक्सल ऑपरेशन्स लॉन्च किए जा रहे हैं। इनमें फोर्स को बड़ी सफलताएं लगातार मिल रही है। पिछले डेढ़ साल में छत्तीसगढ़ मेंं 425 माओवादियों को न्यूट्रलाइज किया गया। 1388 माओवादी आत्मसमर्पण कर चुके हैं और 1443 को गिरफ्तार किया गया है। माओवादी संगठन के महासचिव बसवराजू और सुधाकर सहित बड़े नक्सल लीडर्स को मार गिराने में सुरक्षाबल कामयाब रहा है। उनकी इस कामयाबी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने भी सराहना की। इस बीच, सुकमा के कोंटा में नक्सलियों द्वारा किए गए आईईडी ब्लास्ट में एएसपी आकाश राव शहीद हो गए। सरकार ने नक्सलियों की इस कायराना करतूत को गंभीरता से लिया तथा इस घटना के दूसरे दिन ही एक और बड़ा फैसला किया। जिन जिलों में नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन्स चल रहे, वहां डायरेक्ट आईपीएस को एएसपी ऑपरेशन बनाया गया। आठ डायरेक्ट आईपीएस अफसरों की नक्सल मोर्चे पर तैनाती से सरकार ने अपने मजबूत इरादे स्पष्ट कर दिए हैं कि डेडलाइन में बस्तर को लाल आतंक से मुक्त कर लिया जाएगा और वहां विकास की नई इबारत लिखी जाएगी।