पाइप बम और एडवांस्ड डिवाइस का दावा
पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, ‘द टेरराइजर्स 111 ग्रुप’ ने अपने धमकी भरे मेल में लिखा था कि उन्होंने स्कूल की इमारतों में पाइप बम और एडवांस विस्फोटक उपकरण फिट कर दिए हैं। साथ ही यह भी दावा किया कि समूह ने स्कूलों के आईटी सिस्टम हैक कर लिए हैं। छात्रों और स्टाफ का डेटा चुरा लिया है और सीसीटीवी कैमरों पर नियंत्रण हासिल कर लिया है। ई-मेल में स्पष्ट चेतावनी थी कि यदि 72 घंटे के भीतर 5,000 डॉलर की क्रिप्टोकरेंसी में भुगतान नहीं किया गया तो बम विस्फोट कर दिया जाएगा और हैक किया गया डेटा ऑनलाइन लीक कर दिया जाएगा।
सुबह से दोपहर तक दहशत के बीच अलर्ट
सोमवार सुबह 7:24 बजे पुलिस को पहली शिकायत मिली। कुछ ही घंटों में कई और स्कूलों ने इसी तरह के मेल की जानकारी दी। संदेश में साफ लिखा था “जान बचानी है तो अभी स्कूल खाली करो। हम माफ नहीं करते, हम भूलते नहीं हैं। पैसे भेजो या अंजाम भुगतो।” इस चेतावनी के बाद तत्काल बम निरोधक दस्ते, फायर ब्रिगेड और स्थानीय पुलिस की टीमें मौके पर पहुंचीं। कई स्कूलों में छात्रों को घर भेज दिया गया, जबकि कुछ स्थानों पर उन्हें अस्थायी रूप से खेल के मैदानों में शिफ्ट किया गया। तलाशी पूरी होने के बाद दिल्ली पुलिस ने इन ईमेल्स को फर्जी बताया। साथ ही कैंपस को सुरक्षित घोषित किया।
फर्जी धमकियों का सिलसिला जारी
दिल्ली में यह पहली बार नहीं है, जब इस तरह का हड़कंप मचा हो। जुलाई 2024 में लगातार चार दिन तक स्कूलों को फर्जी धमकी वाले मेल भेजे गए थे। चौथे दिन तो एक साथ 45 स्कूलों और तीन कॉलेजों को बम लगाने की चेतावनी मिली थी। इससे पहले मई 2024 में लगभग 300 स्कूलों को सामूहिक ई-मेल भेजे गए थे, जिन्हें बाद में झूठा पाया गया। इसके बाद अस्पतालों और संग्रहालयों को भी धमकी भरे संदेश भेजे गए थे। हर बार जांच के बाद पुलिस ने इन्हें अफवाह करार दिया। दिल्ली पुलिस ने सभी अभिभावकों और नागरिकों से अपील की है कि वे अफवाहों से डरें नहीं। पुलिस आयुक्त ने कहा, “हर शिकायत को गंभीरता से लिया जा रहा है। जांच एजेंसियां पूरी कोशिश कर रही हैं कि इन मेल के पीछे कौन है। छात्रों की सुरक्षा हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है।”
जांच में सामने आई चुनौतियां
जांचकर्ताओं का कहना है कि ऐसे मेल भेजने वालों का पता लगाना आसान नहीं है। वे अपनी पहचान छिपाने के लिए कई तकनीकी तरीके अपनाते हैं। अधिकारी बताते हैं कि अक्सर ये मेल चार माध्यमों से भेजे जाते हैं। इनमें वैश्विक सेवा प्रदाता (Google) शामिल है। गूगल से सहयोग पाना अपेक्षाकृत आसान होता है। इसके अलावा अपराधी धमकी देने के लिए विदेशी डोमेन प्रदाता ( mail.ru या atomicmail.io) का प्रयोग करते हैं। ये कंपनियां डेटा तभी साझा करती हैं, जब देशों के बीच म्यूचुअल लीगल असिस्टेंस ट्रीटी (MLAT) के तहत औपचारिक प्रक्रिया पूरी की जाए। इसमें दो साल तक लग सकते हैं। इसके अलावा धमकी देने के लिए डार्कनेट और डार्क वेब का उपयोग प्रचलन में है। जिसे ट्रेस करना लगभग नामुमकिन होता है। इसके अलावा प्रॉक्सी सर्वर और वीपीएन भी मेल भेजने वाले की वास्तविक लोकेशन छुपा देते हैं। अधिकारियों का कहना है कि मई में भेजे गए कई धमकी वाले ई-मेल इन्हीं विदेशी डोमेनों से आए थे और वे अब तक अनसुलझे हैं।