जी-7 (ग्रुप ऑफ सेवन) दुनिया की सात सबसे उन्नत अर्थव्यवस्थाओं और यूरोपीय संघ का एक अनौपचारिक समूह है। 1975 में छह देशों फ्रांस, पश्चिमी जर्मनी, इटली, जापान, इंग्लैंड और अमरीका ने समूह बनाया था, जिसे तब जी-6 कहा गया। 1976 में कनाडा के जुडऩे से यह जी-7 हो गया और1998 में रूस को इस ग्रुप में जोडऩे के बाद यह जी-8 बन गया, लेकिन क्रीमिया पर कब्जे के बाद उसे इस ग्रुप से निलंबित कर दिया गया और फिर यह जी-7 समूह रह गया। 1977 से यूरोपीय संघ भी समूह से जुड़ गया। सदस्य नहीं होने के बावजूद संघ के प्रतिनिधि इसमें शामिल होते हैं।
भारत भले जी-7 का स्थायी सदस्य नहीं है, लेकिन प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते आर्थिक प्रभाव और रणनीतिक महत्व के कारण भारत को अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाता रहा है। 2019 के बाद से पीएम मोदी पांच बार से इसमें भाग ले रहे हैं। पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने भी पांच संस्करणों में भाग लिया था, जब रूस इस गुट का हिस्सा था।
जी-7 अनौपचारिक संगठन है। सभी देशों के नेता वैश्विक आर्थिक स्थिरता, अंतरराष्ट्रीय शांति, सुरक्षा और जलवायु से जुड़े मुद्दों पर निर्णय और समझौते करते हैं। हालांकि इसके समझौते बाध्यकारी नहीं हैं। कौन करता है मेजबानी
जी-7 की मेजबानी हर वर्ष रोटेशन के आधार पर होती है। इसका कोई स्थायी सचिवालय या मुख्यालय नहीं है। सम्मेलन का एजेंडा और आयोजन की जिम्मेदारी मेजबान देश की होती है।
जी-7 देशों में दुनिया की 10 फीसदी आबादी रहती है, लेकिन वैश्विक जीडीपी में 45 फीसदी योगदान देते हैं।
2025 का एजेंडा
-वैश्विक शांति और सुरक्षा मजबूत करना
-अंतरराष्ट्रीय अपराध का मुकाबला
-जंगल की आग जैसी आपदा से निपटना
-एआइ, ऊर्जा सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, डिजिटल चुनौतियां और महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति आदि।