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निठारी केस में आरोपी बरी, पीड़ित परिवार ने कहा- पुलिस अफसर और जज को मौत की सजा दो; पढ़ें साल 2006 में क्या हुआ था?

निठारी सीरियल हत्याकांड में सुप्रीम कोर्ट ने मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली को बरी कर दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी सबूतों के अभाव में दोनों को बरी किया था। पंढेर अब सभी आरोपों से मुक्त हैं, जबकि कोली एक अन्य मामले में जेल में हैं। यह फैसला सीबीआई और पीड़ित परिवारों की अपील खारिज करते हुए आया है

भारतJul 31, 2025 / 10:54 am

Mukul Kumar

निठारी केस में आरोपी बरी। फोटो- IANS

साल 2006 में दिल दहलाने वाली घटना हुई थी। तब निठारी सीरियल हत्याकांड ने दुनिया भर के मीडिया का ध्यान खींचा था। अब सुप्रीम कोर्ट ने निठारी कांड के आरोपी मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली को बरी कर दिया है।
साल 2006 में नोएडा के निठारी गांव में कई बच्चों और महिलाओं के शवों के टुकड़े नाले से बरामद हुए थे। इसमें 10 साल की मासूम बच्ची ज्योति का शव भी मिला था।
आरोपियों के बरी होने के बाद ज्योति के पिता झब्बूलाल ने कहा है कि अगर वह दोषी नहीं थे, तो उन्हें इतने सालों तक जेल में क्यों रखा गया?

जिस पुलिस अधिकारी ने उन्हें जेल में डाला, उसे मौत की सजा मिलनी चाहिए और जिस जज ने यह आदेश दिया, उसे भी मौत की सजा मिलनी चाहिए। अगर आप चाहें तो उन्हें बरी कर दें, लेकिन मौत की सजा पुलिस और जज को दें।

सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के फैसले को रखा बरकरार

भारत के मुख्य न्यायाधीश बी।आर। गवई ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2023 के उस फैसले को बरकरार रखा जिसमें कोली को 12 मामलों में और पंढेर को दो मामलों में सुनाई गई मौत की सजा को पलट दिया गया था।
जांच और अभियोजन में गंभीर खामियों का हवाला देते हुए दोनों को बरी कर दिया गया था। हाई कोर्ट ने जांच एजेंसियों की भूमिका और प्रदर्शन पर सवाल उठाए थे।

हालांकि, कोली के पक्ष में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बावजूद, वह 2005 में 14 वर्षीय रिम्पा हलधर की हत्या के मामले में उच्च न्यायालय द्वारा सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा के कारण जेल में ही रहेगा।

क्या बोले पीड़िता के पिता?

झब्बूलाल ने दर्दनाक घटना को याद करते हुए आईएएनएस को बताया कि एक बार के लिए, मैं मान सकता हूं कि मोनिंदर सिंह और कोली ने कोई अपराध नहीं किया। फिर उन्हें जेल में क्यों डाला गया और सजा क्यों दी गई? मैं सर्वोच्च न्यायालय पर विश्वास करता हूं।
यह देश की सर्वोच्च अदालत है, इसलिए मुझे विश्वास है कि उन्होंने जो कहा वह सच था; वह निर्दोष हो सकता है, लेकिन फिर एक निर्दोष व्यक्ति को जेल में क्यों डाला गया?

उन्होंने आगे कहा कि सच्चाई क्या है, यह सिर्फ हम ही जानते हैं। अदालत या वकील चाहे कुछ भी कहें, हमें पता है कि अपराध किसने किया है और ईश्वर उन्हें सजा देगा। हम अब और कोई याचिका दायर नहीं करेंगे।

डेढ़ साल तक अपनी बच्ची को ढूंढते रहे पिता

बता दें कि झब्बूलाल अपनी बेटी ज्योति को एक साल और सात महीने से ज्यादा समय तक ढूंढता रहा था। यहां तक कि वह मुंबई और दिल्ली के वेश्यालयों की भी खाक छानता रहा।
उसकी तलाश तब खत्म हुई जब नोएडा के निठारी गांव में बंगला नंबर D5 के पीछे एक नाले में उसकी बेटी के कंकाल और सामान मिले, जो उसके घर से सिर्फ 30 फीट की दूरी पर है।
उस वक्त 2006 में मोनिंदर सिंह पंढेर और उसके नौकर सुरिंदर कोली ने खूब सुर्खियां बटोरी थी। उसके घर के बगल के नाले से कम से कम 19 बच्चों और महिलाओं के अवशेष बरामद हुए थे।

2009 में कोली को सुनाई गई थी मौत की सजा

कोली को 2009 में एक सत्र अदालत ने रिम्पा हलदर की हत्या के लिए मौत की सजा सुनाई थी। इस फैसले को उच्च न्यायालय और बाद में 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा। दया याचिका दायर होने के बाद उसकी फांसी पर रोक लगा दी गई थी, जिसे अंततः 2014 में राष्ट्रपति ने खारिज कर दिया था।
हालांकि, जनवरी 2015 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दया याचिका पर निर्णय में तीन साल से अधिक की देरी के कारण उसकी मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया। पंढेर को शुरू में दो मामलों में दोषी ठहराया गया था और चार अन्य में बरी कर दिया गया था। अब उसे सभी छह मामलों में पूरी तरह से बरी कर दिया गया है।

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