हड़ताल की मांगें
यह हड़ताल मुख्य रूप से चार नए श्रम संहिताओं (लेबर कोड) को रद्द करने की मांग को लेकर बुलाई गई है, जिन्हें यूनियनों ने मजदूरों के अधिकारों को कुचलने वाला बताया है। इसके अलावा, पुरानी पेंशन योजना की बहाली, न्यूनतम वेतन 26,000 रुपये, ठेका नौकरियों का अंत, सरकारी विभागों के निजीकरण पर रोक, और बेरोजगारी भत्ते की मांग भी शामिल है। यूनियनों का आरोप है कि सरकार ने 17 लाख करोड़ रुपये की राहत पूंजीपतियों को दी, जबकि मजदूरों और किसानों की समस्याओं को नजरअंदाज किया जा रहा है।
प्रभावित होंगी प्रमुख सेवाएं
हड़ताल के कारण बैंकिंग, डाक, कोयला खनन, परिवहन, निर्माण, और स्वास्थ्य सेवाओं सहित कई क्षेत्रों में कामकाज ठप होने की संभावना है। विशेष रूप से, बिजली क्षेत्र के 27 लाख कर्मचारी उत्तर प्रदेश की दो प्रमुख बिजली वितरण कंपनियों (PVVNL और DVVNL) के निजीकरण के विरोध में हड़ताल में शामिल होंगे, जिससे बिजली आपूर्ति प्रभावित हो सकती है।
बिहार में चक्का जाम
बिहार में महागठबंधन दलों ने हड़ताल के समर्थन में चक्का जाम का आह्वान किया है, जिसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी शामिल होंगे। साथ ही, पप्पू यादव ने मतदाता सूची संशोधन के मुद्दे पर बिहार बंद का ऐलान किया है।
तैयारियां जोरों पर
हड़ताल को ऐतिहासिक बनाने के लिए देशभर में तैयारियां तेज हैं। 30 जून से जनसभाएं और जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। 8 जुलाई को छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में मशाल जुलूस, कैंडल मार्च और मोटरसाइकिल रैलियां आयोजित होंगी।
नेताओं की अपील
अखिल भारतीय राज्य सरकारी कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष सुभाष लांबा ने कहा, “यह हड़ताल मजदूरों और कर्मचारियों की गुलामी के दस्तावेज कहे जाने वाले लेबर कोड्स के खिलाफ है।” सीटू के नेता सुखबीर सिंह ने इसे “ऐतिहासिक” करार देते हुए कहा कि यह सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ एकजुटता का प्रतीक होगी।
आर्थिक नुकसान की संभावना
हड़ताल के कारण करोड़ों रुपये के आर्थिक नुकसान की संभावना जताई जा रही है। ट्रेड यूनियनों ने सरकार से मांगों पर बातचीत की अपील की है, लेकिन अब तक कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला है। यह हड़ताल न केवल श्रमिकों बल्कि किसानों और आम जनता की चिंताओं को भी उजागर करती है। देशभर में इस बंद का व्यापक असर देखने को मिल सकता है।