scriptतब सुप्रीम कोर्ट ने तानाशाही पर लगाई थी मुहर- बोले धनखड़, CJI ने कहा- हाल ही में हमने ‘बुलडोजर जस्टिस’ पर लगाई रोक | Judiciary vs Executive Vice-President Jagdeep Dhankhar and CJI BR Gavai | Patrika News
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तब सुप्रीम कोर्ट ने तानाशाही पर लगाई थी मुहर- बोले धनखड़, CJI ने कहा- हाल ही में हमने ‘बुलडोजर जस्टिस’ पर लगाई रोक

उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 1975 की इमरजेंसी के दौरान सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले को भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के न्यायिक इतिहास का ‘सबसे काला अध्याय’ करार दिया।

भारतJun 21, 2025 / 12:03 pm

Shaitan Prajapat

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और CJI बी आर गवई

Vice-President Jagdeep Dhankhar and CJI BR Gavai: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ के उत्तराधिकारी बी.आर. गवई के हालिया बयानों ने एक बार फिर न्यायपालिका बनाम कार्यपालिका के ऐतिहासिक और समकालीन टकराव को सार्वजनिक विमर्श का विषय बना दिया है। जहां एक ओर उपराष्ट्रपति धनखड़ ने 1975 की इमरजेंसी के दौरान सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को ‘दुनिया के न्यायिक इतिहास का सबसे काला अध्याय’ बताया। वहीं दूसरी ओर CJI गवई ने 2024 के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि ‘कार्यपालिका जज, ज्यूरी और जल्लाद नहीं बन सकती।’

धनखड़ का तीखा प्रहार: इमरजेंसी में न्यायपालिका की असफलता

राज्यसभा के इंटर्न्स को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने इमरजेंसी के समय सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले की तीखी आलोचना की, जिसमें नौ उच्च न्यायालयों द्वारा नागरिकों के मौलिक अधिकारों को सुरक्षित रखने के फैसले को पलट दिया गया था। उन्होंने कहा, उस फैसले ने तानाशाही और अधिनायकवाद को वैधता प्रदान की। 1 लाख से अधिक लोगों को कुछ ही घंटों में जेल में डाल दिया गया। यह लोकतंत्र की मूल आत्मा के डूबने जैसा था।
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धनखड़ के अनुसार, उस समय राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री की सलाह पर अकेले नहीं, बल्कि मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करना था, लेकिन यह संवैधानिक व्यवस्था तोड़ी गई। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की उस व्याख्या को कानून के शासन को नकारने वाला करार दिया जिसमें कहा गया कि आपातकाल की अवधि और प्रभाव कार्यपालिका की मर्जी से तय किया जा सकता है।

सीजेआई गवई की संवेदनशील चेतावनी

दूसरी ओर, CJI बी.आर. गवई ने इटली में एक अंतरराष्ट्रीय कानूनी सम्मेलन में दिए अपने भाषण में वर्ष 2024 में दिए गए एक ऐतिहासिक फैसले का जिक्र किया, जिसमें बुलडोजर न्याय को अवैध करार दिया गया था। उन्होंने कहा कि कोई भी कार्यपालिका न्यायालय की भूमिका नहीं निभा सकती। आरोपी के दोष सिद्ध होने से पहले ही उनके घरों को गिराना, कानून के शासन और अनुच्छेद 21 के तहत शरण के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

बुलडोजर न्याय के खिलाफ आवाज

गवई ने अपने भाषण में यह भी जोड़ा कि एक आम नागरिक के लिए घर सिर्फ चार दीवारें नहीं, बल्कि वर्षों की मेहनत, सपना और गरिमा का प्रतीक होता है। उन्होंने सामाजिक और आर्थिक न्याय की परिभाषा देते हुए कहा कि यह केवल पुनर्वितरण या कल्याण नहीं, बल्कि हर नागरिक को गरिमा के साथ जीने और बराबरी के आधार पर सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित करने का माध्यम है।
धनखड़ जहां न्यायपालिका की ऐतिहासिक असफलता की ओर इशारा करते हैं, वहीं गवई न्यायपालिका की वर्तमान भूमिका को लोकतंत्र के रक्षक के रूप में मजबूत करते नजर आते हैं। दोनों वक्तव्यों में इस बात की गंभीर चेतावनी छिपी है कि यदि न्याय और अधिकारों के संवैधानिक ढांचे से छेड़छाड़ की गई तो न केवल लोकतांत्रिक व्यवस्था संकट में आ सकती है, बल्कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों का भी हनन होगा।

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