धनखड़ का तीखा प्रहार: इमरजेंसी में न्यायपालिका की असफलता
राज्यसभा के इंटर्न्स को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने इमरजेंसी के समय सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले की तीखी आलोचना की, जिसमें नौ उच्च न्यायालयों द्वारा नागरिकों के मौलिक अधिकारों को सुरक्षित रखने के फैसले को पलट दिया गया था। उन्होंने कहा, उस फैसले ने तानाशाही और अधिनायकवाद को वैधता प्रदान की। 1 लाख से अधिक लोगों को कुछ ही घंटों में जेल में डाल दिया गया। यह लोकतंत्र की मूल आत्मा के डूबने जैसा था। धनखड़ के अनुसार, उस समय राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री की सलाह पर अकेले नहीं, बल्कि मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करना था, लेकिन यह संवैधानिक व्यवस्था तोड़ी गई। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की उस व्याख्या को कानून के शासन को नकारने वाला करार दिया जिसमें कहा गया कि आपातकाल की अवधि और प्रभाव कार्यपालिका की मर्जी से तय किया जा सकता है।
सीजेआई गवई की संवेदनशील चेतावनी
दूसरी ओर, CJI बी.आर. गवई ने इटली में एक अंतरराष्ट्रीय कानूनी सम्मेलन में दिए अपने भाषण में वर्ष 2024 में दिए गए एक ऐतिहासिक फैसले का जिक्र किया, जिसमें बुलडोजर न्याय को अवैध करार दिया गया था। उन्होंने कहा कि कोई भी कार्यपालिका न्यायालय की भूमिका नहीं निभा सकती। आरोपी के दोष सिद्ध होने से पहले ही उनके घरों को गिराना, कानून के शासन और अनुच्छेद 21 के तहत शरण के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
बुलडोजर न्याय के खिलाफ आवाज
गवई ने अपने भाषण में यह भी जोड़ा कि एक आम नागरिक के लिए घर सिर्फ चार दीवारें नहीं, बल्कि वर्षों की मेहनत, सपना और गरिमा का प्रतीक होता है। उन्होंने सामाजिक और आर्थिक न्याय की परिभाषा देते हुए कहा कि यह केवल पुनर्वितरण या कल्याण नहीं, बल्कि हर नागरिक को गरिमा के साथ जीने और बराबरी के आधार पर सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित करने का माध्यम है। धनखड़ जहां न्यायपालिका की ऐतिहासिक असफलता की ओर इशारा करते हैं, वहीं गवई न्यायपालिका की वर्तमान भूमिका को लोकतंत्र के रक्षक के रूप में मजबूत करते नजर आते हैं। दोनों वक्तव्यों में इस बात की गंभीर चेतावनी छिपी है कि यदि न्याय और अधिकारों के संवैधानिक ढांचे से छेड़छाड़ की गई तो न केवल लोकतांत्रिक व्यवस्था संकट में आ सकती है, बल्कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों का भी हनन होगा।