जगन्नाथ मंदिर में पूजी जाने वाली देवी सुभद्रा
उड़ीसा के पुरी में प्रसिद्ध श्रीजगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र (बलराम) और सुभद्रा तीनों एक साथ पूजे जाते हैं। यहां सुभद्रा को देवी के रूप में पूजा जाता है और उन्हें ‘जगन्नाथ की बहन’ के रूप में सम्मान प्राप्त है। यह मंदिर बारहवीं शताब्दी में स्थापित हुआ था और यहां सुभद्रा को दिव्य रूप में प्रतिष्ठित किया गया है।
दोनों सुभद्राओं में क्या समानता है ?
दोनों ही रूपों में सुभद्रा भगवान कृष्ण और बलराम की बहन मानी जाती हैं। दोनों में भक्ति, प्रेम और पारिवारिक भावनाओं का अद्भुत मेल देखा जाता है। दोनों का नाम ‘सुभद्रा’ ही है और धार्मिक परंपरा में इनका विशेष स्थान है। वे दोनों ही श्रीहरि विष्णु (कृष्ण/जगन्नाथ) से जुड़ी हुई शक्ति के रूप में देखी जाती हैं।
क्या है दोनों सुभद्राओं में में अंतर ?
महाभारत की सुभद्रा एक राजकुमारी थीं और उनका ऐतिहासिक स्थान है। वे योद्धा अर्जुन की पत्नी बनीं और वीर अभिमन्यु की मां थीं। पुरी मंदिर की सुभद्रा को एक देवी का दर्जा प्राप्त है। वे त्रिदेव (जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा) के रूप में पूजी जाती हैं। महाभारत की सुभद्रा का वर्णन एक सामाजिक भूमिका में है, जबकि जगन्नाथ मंदिर की सुभद्रा आध्यात्मिक और पूजनीय देवी हैं।
देवी योगमाया के रूप में भी होती हैं पूजित
कई धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सुभद्रा को देवी योगमाया का अवतार भी माना गया है। योगमाया वही दिव्य शक्ति हैं जिन्होंने भगवान कृष्ण के जन्म के समय यशोदा के गर्भ से जन्म लेकर कंस को चेतावनी दी थी। इस दृष्टिकोण से सुभद्रा केवल एक बहन नहीं बल्कि ईश्वर की शक्ति का स्वरूप भी हैं।
रथ यात्रा में होता है विशेष महत्व
हर वर्ष पुरी में आयोजित होने वाली रथ यात्रा में सुभद्रा देवी के लिए अलग रथ सजाया जाता है। यह पर्व दिखाता है कि तीनों देवता—जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा—समान महत्व रखते हैं। इस उत्सव में सुभद्रा का रथ “दर्पदलन” कहलाता है।
क्या भगवान श्रीकृष्ण और भगवान जगन्नाथ एक ही हैं (Janmashtami 2025)
भगवान श्रीकृष्ण और भगवान जगन्नाथ वास्तव में एक ही दिव्य सत्ता के दो अलग-अलग रूप माने जाते हैं। वैदिक शास्त्रों के अनुसार, श्रीकृष्ण विष्णु के पूर्ण अवतार हैं, और ओडिशा की परंपरा में जगन्नाथ को उन्हीं का भावमय, भक्ति-प्रधान रूप माना गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब कृष्ण ने गहन आध्यात्मिक भाव में प्रवेश किया, तो उनका स्वरूप जगन्नाथ के रूप में प्रकट हुआ—बड़े नेत्रों और निराकार जैसे रूप में। स्कंद पुराण से लेकर लोक आस्थाओं तक, यह मान्यता है कि जगन्नाथ वही कृष्ण हैं जो भक्तों के साथ सीधे संबंध बनाने के लिए इस रूप में आए। रथ यात्रा जैसे उत्सवों में यही भाव झलकता है कि भगवान अपने भक्तों तक स्वयं चलकर आते हैं। धर्मशास्त्रों, पुराणों और लोककथाओं का सम्मिलित स्वर यही बताता है कि श्रीकृष्ण और जगन्नाथ में कोई अंतर नहीं, बस उनके स्वरूप और उपासना की शैली में भिन्नता है।
धार्मिक और सांस्कृतिक विद्वानों की राय
धार्मिक और सांस्कृतिक विद्वानों ने सुभद्रा के द्वैध स्वरूप को भारतीय धार्मिक परंपरा की विशेषता बताया है। वाराणसी के धर्मशास्त्री पं. रामानुज त्रिपाठी का कहना है,“यह अद्वितीय उदाहरण है जहाँ एक ही नाम की पात्र, ऐतिहासिक महाकाव्य और देवी आराधना—दोनों में—अपना स्थान बनाए हुए है। यह भारतीय संस्कृति की गहराई और विविधता को दर्शाता है।”
योगमाया की शक्ति का स्वरूप
ओडिशा के पुरी से जुड़े पुरोहित एवं शोधकर्ता गोविंदनाथ महारथी ने कहा: “पुरी की सुभद्रा महज कृष्ण की बहन नहीं, बल्कि योगमाया की शक्ति का स्वरूप हैं। उनके बिना रथ यात्रा और मंदिर की कल्पना भी अधूरी है।”
राजकुमारी और देवी का स्वरूप
बहरहाल भगवान श्रीकृष्ण और जगन्नाथ की बहन ‘सुभद्रा’ एक ही नाम साझा करती हैं, लेकिन उनके रूप, भूमिका और धार्मिक महत्व अलग-अलग हैं। एक ओर वे महाभारत की बहादुर राजकुमारी हैं, तो दूसरी ओर वे देवी का स्वरूप हैं जो प्रेम और भक्ति का प्रतीक बनकर लोगों की आस्था का केंद्र हैं।