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परमवीर चक्र, अशोक चक्र जैसे वीरता पुरस्कार पाने वालों की प्रेरणादायक गाथाएँ

भारत के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार, परमवीर चक्र और अशोक चक्र, उन वीर सपूतों को प्रदान किए जाते हैं, जिन्होंने असाधारण साहस, बलिदान और देशभक्ति का परिचय दिया हो। आइए जानते हैं ऐसे दो वीरों के नाम जिन्हें इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

भारतAug 14, 2025 / 04:13 pm

Devika Chatraj

परमवीर चक्र, अशोक चक्र (File Photo)

भारत के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार, परमवीर चक्र और अशोक चक्र, उन वीर सपूतों को प्रदान किए जाते हैं, जिन्होंने असाधारण साहस, बलिदान और देशभक्ति का परिचय दिया। ये पुरस्कार न केवल सैनिकों की वीरता को सम्मानित करते हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बनते हैं। यहाँ दो ऐसे वीरों की प्रेरणादायक गाथाएँ प्रस्तुत हैं, जिन्हें इन प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

क्या है परमवीर चक्र, अशोक चक्र?

परमवीर चक्र
परमवीर चक्र भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान है, जो युद्ध के समय असाधारण वीरता, शौर्य और बलिदान के लिए सैनिकों को प्रदान किया जाता है। इसे मरणोपरांत या जीवित सैनिकों को दिया जा सकता है। यह सम्मान दुश्मन के सामने अदम्य साहस और नेतृत्व के लिए दिया जाता है। परमवीर चक्र विजेता को एक पदक, प्रशस्ति पत्र और आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। अब तक केवल 21 सैनिकों को यह सम्मान मिला है, जिनमें से अधिकांश मरणोपरांत दिए गए।
अशोक चक्र
अशोक चक्र भारत का सर्वोच्च शांति कालीन वीरता पुरस्कार है। यह सैनिकों और नागरिकों दोनों को असाधारण साहस, वीरता या आत्म-बलिदान के लिए दिया जाता है, जो युद्ध से इतर परिस्थितियों में प्रदर्शित किया जाता है, जैसे आतंकवाद विरोधी अभियान या अन्य खतरनाक परिस्थितियों में। यह भी मरणोपरांत या जीवित व्यक्तियों को दिया जा सकता है।

परमवीर चक्र, अशोक चक्र में अंतर

  • परमवीर चक्र युद्धकाल में वीरता के लिए, जबकि अशोक चक्र शांतिकाल में वीरता के लिए दिया जाता है।
  • दोनों ही भारत के सबसे प्रतिष्ठित सम्मान हैं और इन्हें अत्यंत दुर्लभ मामलों में प्रदान किया जाता है।

परमवीर चक्र: कैप्टन विक्रम बत्रा

कैप्टन विक्रम बत्रा की वीरता”कैप्टन विक्रम बत्रा, जिन्हें “शेरशाह” के नाम से जाना जाता है, 1999 के कारगिल युद्ध के सबसे प्रेरणादायक नायकों में से एक हैं। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में जन्मे विक्रम ने 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में अपनी सेवाएँ दीं। उनकी वीरता की गाथा तब शुरू हुई जब उन्हें पॉइंट 5140 और पॉइंट 4875 जैसे दुर्गम पहाड़ी ठिकानों को दुश्मन से मुक्त कराने का जिम्मा सौंपा गया। 6 जुलाई 1999 को, कैप्टन बत्रा ने पॉइंट 4875 पर कब्जा करने के लिए अपनी टुकड़ी का नेतृत्व किया। दुश्मन की भारी गोलीबारी के बीच, उन्होंने न केवल अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाया, बल्कि स्वयं आगे बढ़कर दुश्मन के बंकरों पर हमला किया। उनका प्रसिद्ध नारा, “ये दिल माँगे मोर!”, युद्ध के मैदान में उनके अदम्य उत्साह का प्रतीक बन गया। इस मिशन के दौरान, एक घायल सैनिक को बचाने के प्रयास में कैप्टन बत्रा ने अपने प्राणों की आहुति दी, लेकिन उनकी वीरता ने भारतीय सेना को महत्वपूर्ण जीत दिलाई।उनके अप्रतिम साहस के लिए, कैप्टन विक्रम बत्रा को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। उनकी गाथा आज भी हर भारतीय के दिल में देशभक्ति की भावना जगाती है। हिमाचल प्रदेश के लोगों के लिए, विक्रम न केवल एक सैनिक थे, बल्कि एक प्रेरणा थे, जिन्होंने “वीरभूमि” की शान को और बढ़ाया।

अशोक चक्र: हवलदार हंगपन दादा

आतंक के खिलाफ साहस की मिसाल “हवलदार हंगपन दादा, जिन्हें प्यार से “दादा” कहा जाता था, अरुणाचल प्रदेश के एक साधारण गाँव से थे, लेकिन उनकी वीरता ने उन्हें देश का नायक बना दिया। 11 बिहार रेजिमेंट में सेवा देने वाले हंगपन को 2016 में जम्मू-कश्मीर के नौगाम सेक्टर में आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन के दौरान उनके साहस के लिए मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया।मई 2016 में, हंगपन को सूचना मिली कि कुछ आतंकवादी नौगाम सेक्टर में घुसपैठ कर चुके थे। उन्होंने तुरंत अपनी टुकड़ी का नेतृत्व किया और आतंकवादियों का सामना किया। भारी गोलीबारी के बीच, हंगपन ने न केवल तीन आतंकवादियों को मार गिराया, बल्कि अपने साथी सैनिकों की जान भी बचाई। इस दौरान, वह गंभीर रूप से घायल हो गए, लेकिन अंतिम सांस तक लड़ते रहे। उनके बलिदान ने न केवल आतंकवादियों के मंसूबों को नाकाम किया, बल्कि उनके साथियों को सुरक्षित रखा।हंगपन की वीरता और नेतृत्व ने उन्हें शांति काल के सबसे बड़े वीरता पुरस्कार, अशोक चक्र, का हकदार बनाया। उनकी कहानी यह सिखाती है कि साहस और देशभक्ति का जज्बा किसी भी परिस्थिति में कम नहीं होता। आज भी, अरुणाचल प्रदेश के लोग उनके बलिदान को गर्व के साथ याद करते हैं।

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