कमाई में चुनौतियां
रिपोर्ट बताती है कि 88% मॉनिटाइज्ड चैनल (Monetize Channel) वाले क्रिएटर्स अपनी आय का 75% से कम सोशल मीडिया से कमाते हैं। ज्यादातर क्रिएटर्स को आय के लिए अन्य विकल्प तलाशने पड़ते हैं। कोफ्लुएंस के को-फाउंडर रितेश उज्ज्वल के मुताबिक, कंटेंट की आपूर्ति तेजी से बढ़ रही है, लेकिन मांग उतनी नहीं है। नतीजतन, क्रिएटर्स की कमाई नहीं बढ़ रही। औसतन, 50,000 रुपये मासिक कमाई के लिए 5-7 साल लग सकते हैं, जबकि 2 लाख रुपये मासिक कमाई के लिए कंटेंट को 5 लाख व्यूज चाहिए। इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग पर खर्च: इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग में विभिन्न सेक्टर्स का योगदान इस प्रकार है:
- ई-कॉमर्स: 23% हिस्सेदारी, 800 करोड़ रुपये सालाना खर्च
- FMCG: 19%, 650 करोड़ रुपये
- कंज्यूमर ड्यूरेबल्स: 10%, 350 करोड़ रुपये
- ऑटोमोबाइल: 9%, 315 करोड़ रुपये
- BFSI: 9%, 300 करोड़ रुपये
- एंटरटेनमेंट: 7%, 245 करोड़ रुपये
इन्फ्लुएंसर्स की कमाई: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर इन्फ्लुएंसर्स की औसत मासिक कमाई फॉलोअर्स के आधार पर इस प्रकार है:
- नैनो (1,000-10,000 फॉलोअर्स): इंस्टाग्राम पर 300-5,000 रुपये, यूट्यूब पर 1,000-10,000 रुपये
- माइक्रो (10,000-1 लाख): इंस्टाग्राम पर 2,500-80,000 रुपये, यूट्यूब पर 4,000-2,00,000 रुपये
- मैक्रो (1-5 लाख): इंस्टाग्राम पर 40,000-5,00,000 रुपये, यूट्यूब पर 50,000-6,00,000 रुपये
- मेगा (5 लाख से अधिक): इंस्टाग्राम पर 1,80,000 रुपये से अधिक, यूट्यूब पर 2,50,000 रुपये से अधिक
सोशल मीडिया पर निर्भरता कम
रिपोर्ट के अनुसार, 90% क्रिएटर्स पूरी तरह से सोशल मीडिया पर निर्भर नहीं हैं। लोग रील्स, शॉट्स और वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाल रहे हैं, लेकिन केवल चुनिंदा लोग ही इससे स्थायी आय बना पा रहे हैं। यह स्थिति दर्शाती है कि भारत में कंटेंट क्रिएशन एक आकर्षक अवसर तो है, लेकिन इसमें सफलता और स्थिर आय के लिए लंबा समय और मेहनत जरूरी है।