योजना का विवरण
मनोहर लाल खट्टर ने बताया कि जम्मू-कश्मीर में जो हाइड्रो प्रोजेक्ट्स अभी प्रारंभिक चरण में हैं, उनमें जल भंडारण (Water Storage) की क्षमता को बढ़ाने के लिए विशेष डिजाइन और तकनीकी योजनाएं तैयार की जाएंगी। यह सुनिश्चित करेगा कि सिंधु जल संधि के तहत भारत को मिलने वाले जल संसाधनों का अधिकतम और प्रभावी उपयोग हो सके। खट्टर ने यह भी स्पष्ट किया कि जिन परियोजनाओं की तकनीकी जानकारियां पहले ही अंतिम रूप ले चुकी हैं और जो वर्तमान में पाइपलाइन में हैं, उनमें किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं किया जाएगा। इसका कारण यह है कि इन परियोजनाओं की डिजाइन और तकनीकी प्रक्रियाएं पहले से ही फाइनल हो चुकी हैं, और उनमें बदलाव करना समय और संसाधनों की बर्बादी हो सकता है।भारत की रणनीति
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित सिंधु जल संधि के तहत सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों का जल बंटवारा किया गया है। इस संधि के अनुसार, भारत को सतलुज, ब्यास और रावी नदियों पर पूर्ण अधिकार है, जबकि सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों का अधिकांश जल पाकिस्तान को आवंटित है। हालांकि, भारत को इन तीन नदियों के जल का सीमित उपयोग, जैसे कि जलविद्युत उत्पादन और सिंचाई के लिए, करने की अनुमति है।हाइड्रो प्रोजेक्ट्स नई रणनीति का हिस्सा
हाल के वर्षों में भारत ने इस संधि के तहत अपने अधिकारों का अधिक प्रभावी ढंग से उपयोग करने की दिशा में कदम उठाए हैं। जम्मू-कश्मीर में हाइड्रो प्रोजेक्ट्स में जल भंडारण क्षमता बढ़ाने की यह नई योजना भी इसी रणनीति का हिस्सा है। इससे न केवल जलविद्युत उत्पादन में वृद्धि होगी, बल्कि बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई और पेयजल आपूर्ति जैसे क्षेत्रों में भी बेहतर प्रबंधन संभव होगा।जम्मू-कश्मीर के लिए महत्व
जम्मू-कश्मीर, अपनी भौगोलिक स्थिति और नदी प्रणालियों की उपलब्धता के कारण, जलविद्यालुत परियोजनाओं के लिए एक आदर्श क्षेत्र है। इस क्षेत्र में हाइड्रो प्रोजेक्ट्स न केवल ऊर्जा उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी गति प्रदान करते हैं। जल भंडारण क्षमता बढ़ाने से इन परियोजनाओं की दक्षता में सुधार होगा और क्षेत्र में ऊर्जा की मांग को पूरा करने में मदद मिलेगी। साथ ही, यह योजना बरसात के मौसम में बाढ़ के जोखिम को कम करने और सूखे की स्थिति में जल उपलब्धता सुनिश्चित करने में भी सहायक होगी।चुनौतियां और भविष्य की दिशा
हालांकि यह योजना भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके सामने कुछ चुनौतियां भी हैं। इनमें पर्यावरणीय प्रभाव, स्थानीय समुदायों का समर्थन, और तकनीकी जटिलताएं शामिल हैं। इसके अलावा, सिंधु जल संधि के तहत पाकिस्तान के साथ संतुलन बनाए रखना भी एक संवेदनशील मुद्दा है।केंद्र सरकार ने आश्वस्त किया है कि सभी नए प्रोजेक्ट्स को पर्यावरणीय और सामाजिक मानकों के अनुरूप डिजाइन किया जाएगा। साथ ही, इन परियोजनाओं को समयबद्ध तरीके से पूरा करने के लिए संसाधनों का प्रभावी उपयोग किया जाएगा।