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‘पत्रकारों के लेख और वीडियो प्रथम दृष्यता राजद्रोह नहीं’, सुप्रीम कोर्ट ने किस मामले में ऐसा कहा

जस्टिस कांत ने कहा- विधायी रूप से यह कैसे परिभाषित किया जा सकता है कि कौन से कृत्य देश की एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले अपराध की श्रेणी में आएंगे?

Aug 13, 2025 / 06:53 pm

Ashib Khan

SC में धारा-152 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर हुई सुनवाई (Photo-ANI)

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी पत्रकार का आर्टिकल या वीडियो प्रथम दृष्यता राजद्रोह नहीं है। जस्टिस सूर्यकांत और जॉयमाल्या बागची की पीठ ने ‘द वायर’ के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और ‘फाउंडेशन ऑफ इंडियापेंडेंट जर्नलिज्म’ के सदस्यों को गिरफ्तारी से बचाते हुए यह टिप्पणी की है। पीठ ने कहा कि क्या लेख लिखने या समाचार वीडियो तैयार करने के लिए पत्रकारों को मामलों में उलझना चाहिए? क्या इसके लिए गिरफ्तारी की आवश्यकता होनी चाहिए?
इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि धारा 152 की वैधता को चुनौती देने वाली पत्रकार द्वारा दायर याचिका जवाबदेही से बचने का एक बहाना है।

तुषार मेहता की बात पर जस्टिस कांत ने कहा- हम पत्रकारों को एक अलग वर्ग के रूप में वर्गीकृत नहीं कर रहे हैं। हालांकि, क्या कोई लेख देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा पैदा करता है? यह एक लेख है, ऐसा नहीं है कि कोई भारत में अवैध हथियारों और गोला-बारूद की तस्करी कर रहा है।
मामले में सुनवाई करते हुए जस्टिस कांत ने कहा- विधायी रूप से यह कैसे परिभाषित किया जा सकता है कि कौन से कृत्य देश की एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले अपराध की श्रेणी में आएंगे? यह निर्धारित करने के लिए कि धारा 152 के तहत आरोप सही हैं या नहीं, कानून को प्रत्येक मामले के तथ्यों पर लागू करना होगा। 
वहीं याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन ने कहा कि उन्होंने बीएनएस धारा 152 की वैधता को भी चुनौती दी है, जो कि कठोर धारा 124ए का परिष्कृत संस्करण मात्र है, जिसके क्रियान्वयन पर उच्चतम न्यायालय ने पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा इसकी वैधता पर निर्णय दिए जाने तक रोक लगा दी थी।
वरिष्ठ अधिवक्ता रामकृष्णन ने कहा कि धारा 152 में ‘राजद्रोह’ शब्द नहीं है, लेकिन अन्य सभी उद्देश्यों के लिए प्रावधान का उद्देश्य धारा 124ए के समान है और इसका इस्तेमाल पत्रकारों को परेशान करने के लिए तेजी से किया जा रहा है।

क्या है पूरा मामला

बता दें कि असम पुलिस ने एक शिकायत पर ‘द वायर’ के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन पर एफआईआर दर्ज की थी जिसमें संपादक पर ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय वायुसेना के विमानों के कथित नुकसान की रिपोर्टिंग करके देशद्रोही लेख लिखने का आरोप लगाया गया था । पत्रकार ने कहा कि उन्होंने इंडोनेशिया में देश के सैन्य अताशे सहित भारत के रक्षा कर्मियों के हवाले से रिपोर्ट लिखी थी।

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