जिले के 18 गाँव-कुमगाँव, गोर्रा, पुंगारपाल, झारा, कोन्दाहुर, ताडोनार, रेंगाबेड़ा, छोटेफरसगाँव, पदनार, टेमरुगॉव, मढ़ोनार, कचोरा, ब्रेहबेड़ा, चिहरा, तिरहुल, बागडोंगरी, उड़िदगाँव और मरसकोडो-ने ग्राम सभा की स्वीकृति के बाद अपने दावे पूरे दस्तावेजों के साथ प्रस्तुत किए। इसके बावजूद जिला स्तरीय समिति की ओर से अब तक अधिकार पत्र जारी नहीं किए गए।
World Tribal Day 2025: ग्रामीणों की आवाज
अशोदा पोटाई, बागडोंगरी: ‘‘पहले जंगल को लेकर जागरूकता नहीं थी, लेकिन अब हम खुद इसे बचाने के लिए कटाई पर रोक और संरक्षण का संकल्प ले चुके हैं।’’ मोहन दुग्गा, पुंगारपाल: ‘‘दावा तो जमा किया है, लेकिन आगे की कार्यवाही या आवश्यक दस्तावेजों की जानकारी तक नहीं मिल रही।’’ सुखधर पोटाई, मरसकोडो: ‘‘एक साल पहले ग्राम सभा में दावा प्रस्तुत किया, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।’’
सीताराम सलाम, टेमरुगांव: ‘‘दावा देने के बाद गाँव की सीमाओं पर पौधरोपण शुरू किया, पर प्रशासन से कोई सूचना नहीं मिली।’’
सरकारी दफ्तर के चक्कर काट रहे आदिवासी
ग्रामीणों का कहना है कि वे खेती-किसानी और पशुपालन से समय निकालकर लगातार सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन कोई ठोस जवाब नहीं मिल रहा। सुशासन तिहार में भी शिकायत की गई थी, पर नतीजा शून्य रहा। ग्रामीण मानते हैं कि यदि समय पर अधिकार पत्र मिल जाते, तो वनों के संरक्षण, प्रबंधन और पुनरुत्पादन की ठोस योजना बनाई जा सकती थी, जिससे पर्यावरण और समुदाय—दोनों को लाभ होता।
लागों का संघर्ष जारी
World Tribal Day 2025: आने वाले दिनों में बैठक कर सभी दावों की जांच की जाएगी। दस्तावेज पूर्ण पाए जाने पर अधिकार पत्र जारी होंगे, जबकि त्रुटि होने पर ग्राम स्तर पर सूचना दी जाएगी।
राजेन्द्र सिंह, सहायक आयुक्त आदिवासी विकास विभाग
नारायणपुर के आदिवासियों की यह लड़ाई केवल वन अधिकारों की नहीं, बल्कि अपनी पहचान, आत्मनिर्भरता और संवैधानिक समान की है। जब तक अधिकार पत्र नहीं मिलते, विश्व आदिवासी दिवस इन समुदायों के लिए केवल एक औपचारिक दिन बनकर रह जाएगा, जो हर साल उन्हें अधूरे वादों की याद दिलाता रहेगा।