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जिस गांव से निकले अर्जुन अवार्डी हनुमान, वहां एक भी खेल मैदान नहीं

नावांशहर (नागौर). अर्जुन अवार्डी हनुमान सिंह राठौड़ का गांव आज भी एक खेल मैदान के लिए तरस रहा है। इसी गांव से निकलकर दुनियाभर में अपनी पहचान बनाने वाले राठौड़ के लिए ये बड़ी पीड़ा है। पत्रिका टीम से बातचीत में राठौड़ ने कहा कि असली सोना आज भी गांवों में छुपा है, सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए।

नागौरAug 29, 2025 / 04:34 pm

Ravindra Mishra

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बास्केटबॉल के जादूगर हनुमान सिंह राठौड़ अर्जुन व महाराणा प्रताप अवार्ड के साथ

खेल दिवस: गांवों से कैसे निकलेंगी खेल प्रतिभाएं, सुविधा ही नहीं

दीपक कुमार शर्मा

नावांशहर (नागौर). अर्जुन अवार्डी हनुमान सिंह राठौड़ का गांव आज भी एक खेल मैदान के लिए तरस रहा है। इसी गांव से निकलकर दुनियाभर में अपनी पहचान बनाने वाले राठौड़ के लिए ये बड़ी पीड़ा है। पत्रिका टीम से बातचीत में राठौड़ ने कहा कि असली सोना आज भी गांवों में छुपा है, सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए। भगवानपुरा में न तो बास्केटबॉल का मैदान है और न ही किसी अन्य खेल का। ऐसे में हमारे गांव की प्रतिभाएं कैसे ओलंपिक तक पहुंचेंगी।
16 फरवरी 1950 को सैनिक परिवार में जन्मे राठौड़ के पिता कैप्टन बच्चन सिंह राठौड़ आर्मी में रहे। प्राथमिक शिक्षा गांव में पूरी करने के बाद राठौड़ ने राष्ट्रीय मिलिट्री स्कूल अजमेर और राजकीय महाविद्यालय अजमेर से पढ़ाई पूरीे की। राठौड़ को 1975 में तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने उन्हें खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया। उन्हें खेल जगत में ‘प्लेमेकर’ के नाम से पहचान मिली और वे लंबे समय तक भारत के लिए जर्सी नम्बर 14 पहनकर खेले। वर्ष 1980 का मॉस्को ओलंपिक में भारतीय बास्केटबॉल टीम पहली और आखिरी बार ओलंपिक में पहुंची थी। इस दौरान भारतीय ध्वजवाहक बनने का गौरव हनुमान सिंह राठौड़ को मिला। राजस्थान से उनके साथ परमजीत सिंह और जोरावर सिंह भी टीम का हिस्सा थे।
फुटबॉल खेलते थे, बास्केटबॉल में महारत

कॉलेज जीवन में फुटबॉल, हॉकी, क्रिकेट और बास्केटबॉल सभी खेलों में रुचि रखने वाले हनुमान सिंह राठौड़ ने शुरुआत में फुटबॉल से पहचान बनाई। अजमेर विश्वविद्यालय की टीम को लगातार तीन बार चैंपियन बनाने के बाद उनका चयन राजस्थान टीम में हुआ। बाद में उन्होंने बास्केटबॉल को अपनाया और जल्द ही भारतीय टीम का हिस्सा बने।
उपलब्धियां और सम्मान :

1975 : अर्जुन अवार्ड (भारत सरकार)

1979 : राष्ट्रदूत अवार्ड

1983 : महाराणा प्रताप अवार्ड (राजस्थान सरकार का सर्वोच्च खेल सम्मान)

2013 : मारवाड़ रत्न अवार्ड
सेवाओं की लम्बी यात्रा:-

राठौड़ भारतीय रेलवे (1974-78), श्रीराम रेंज कोटा (1978-86), स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (1986-2005) और राजस्थान बास्केटबॉल अकादमी (2007-2010) में योगदान देने के बाद वे चोपासनी स्कूल (2015-2020) में स्पोर्ट्स डायरेक्टर रहे। वर्तमान में वे भवानी निकेतन महाविद्यालय में स्पोर्ट्स डायरेक्टर के रूप में सेवाएं दे रहे हैं। वहीं वर्ष 2015 से वे भारतीय बास्केटबॉल टीम की चयन समिति के सदस्य भी हैं ।

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