जीआरपी के आंकड़ों के अनुसार, इन 11 वर्षों में 6,760 यात्री चलती ट्रेन से गिरकर जान गंवा बैठे, जबकि 14,257 यात्री घायल हुए। रेलवे ट्रैक पार करते समय सबसे अधिक दुर्घटनाएं हुईं और इस अवधि में 16,087 लोगों की मौत और 3,369 लोग घायल हुए।
इसके अलावा रेलवे पोल से टकराने पर 103 यात्रियों की मौत और 655 यात्री घायल हुए। जबकि प्लेटफॉर्म और पटरी के गैप में गिरने से 147 लोगों की जान गई और 125 घायल हुए। ओवरहेड वायर के संपर्क में आने से 181 लोगों की मौत और 203 लोग घायल हुए।
वहीँ, रेलवे पटरियों पर आत्महत्या करने के मामलों में 676 लोगों ने जान दी, जबकि पांच लोग घायल हुए।
हर दिन 7 लोगों की मौत!
जीआरपी द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, हर दिन औसतन 7 लोगों की मौत मुंबई उपनगरीय रेलवे ट्रैक पर होती है, जिनमें से कम से कम एक व्यक्ति चलती ट्रेन से गिरकर जान गंवाता है। इस साल अप्रैल महीने तक ही कम से कम 120 यात्रियों की जान चलती ट्रेन से गिरने के कारण चली गई।
2024 में कुल 2,468 लोगों की मौत रेलवे पटरियों पर हुई, जो 2023 के 2,590 और 2022 के 2,507 मौतों की तुलना में थोड़ा कम है। इसके अलावा 2,697 लोग घायल हुए। इनमें से सबसे ज्यादा मौतें मध्य रेलवे पर 1,553 दर्ज की गईं, जबकि पश्चिम रेलवे पर 935 लोगों की जान गई।
इसमें मौत के मुख्य कारण 1,151 लोग पटरियां पार करते समय हादसे का शिकार हुए, 570 यात्रियों की मौत चलती लोकल ट्रेन से गिरकर हुई. जबकि 14 लोग ट्रेन और प्लेटफॉर्म के बीच के गैप में गिरकर मारे गए। कल्याण स्टेशन पर सबसे ज्यादा 116 मौतें ट्रेन से गिरने की वजह से हुईं, इसके बाद वसई में 45 मौतें दर्ज की गईं।
1200 यात्रियों की है क्षमता, होते है 5000 से ज्यादा यात्री
जीआरपी अधिकारियों के मुताबिक, इन हादसों की सबसे बड़ी वजह ट्रेनों में भारी भीड़भाड़ है। 12 डिब्बों वाली लोकल ट्रेन की क्षमता लगभग 1,200 यात्रियों की होती है, लेकिन पीक आवर्स में इनमें औसतन 5,500 यात्री सफर करते हैं। इसका मतलब हर कोच में जहां सिर्फ 100 लोगों की जगह होती है, वहां 450 यात्री ठुंसे होते हैं। मुंबई का उपनगरीय रेल नेटवर्क दुनिया का सबसे व्यस्त नेटवर्क माना जाता है, जहां प्रतिदिन लगभग 75 लाख यात्री सफर करते हैं।