मनसे और उद्धव की शिवसेना के अलावा कांग्रेस और एनसीपी शरद पवार गुट ने भी महाराष्ट्र सरकार के इस फैसले का एक सुर में विरोध किया है। विपक्षी दलों का कहना है कि इतनी कम उम्र से जबरन हिंदी पढ़ाना ठीक नहीं है, महाराष्ट्र में सबसे पहले मराठी भाषा है। बीजेपी के हिंदी को जबरन थोपने के प्रयासों को सफल नहीं होने दिया जायेगा।
इस बीच, राज्य के स्कूल शिक्षा मंत्री दादा भुसे ने गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में तीन भाषा नीति को स्पष्ट करते हुए कहा कि पहली से दूसरी कक्षा तक हिंदी भाषा का केवल मौखिक शिक्षण ही कराया जाएगा। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय शैक्षणिक नीति (NEP) के तहत तीसरी भाषा के लिए मौखिक प्रशिक्षण की ही व्यवस्था है और कक्षा पहली-दूसरी के छात्रों को किताबें नहीं दी जाएंगी। केवल शिक्षक पुस्तकों का उपयोग कर मौखिक रूप से पढ़ाएंगे।
लिखित शिक्षा तीसरी कक्षा से
दादा भुसे ने आगे बताया कि हिंदी भाषा का लिखित अध्ययन, किताबें और लेखन अभ्यास तीसरी कक्षा से शुरू किया जाएगा। इससे पहले केवल छात्रों के सुनने और बोलने पर जोर दिया जाएगा। हालांकि सरकार के इस स्पष्टीकरण के बावजूद विरोध की लहर थमती नहीं दिख रही है। अब सबकी निगाहें 5 जुलाई के मनसे के मोर्चे पर हैं।
हिंदी पर राजनीति बर्दाश्त नहीं- आठवले
वहीँ, केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले ने महाराष्ट्र में हिंदी विरोध को लेकर विपक्ष पर सवाल खड़े किए है। आरपीआई प्रमुख आठवले ने कहा कि हिंदी भारत की भाषा है और इसका सम्मान होना चाहिए। हिंदी का विरोध सिर्फ राजनीति फायदे के लिए किया जा रहा है। उन्होंने ऐलान किया कि उनकी पार्टी रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (RPI) इस मुद्दे पर रैली निकालेगी। आठवले ने कहा कि हिंदी को लेकर किसी भी तरह की राजनीति बर्दाश्त नहीं की जाएगी। भारत में कई भाषाएं हैं लेकिन देश में एक सामान्य भाषा की जरूरत है, जिसके लिए संविधान सभा और बाबासाहेब आंबेडकर ने हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में चुना। हिंदी का सम्मान सभी को करना चाहिए।
आठवले ने यह भी कहा कि महाराष्ट्र में कुछ लोग हिंदी के खिलाफ बोल रहे हैं, खासकर राज ठाकरे की पार्टी। हिंदी और मराठी दोनों का महत्व है। जैसे अंग्रेजी मीडियम स्कूलों में मराठी पढ़ाई जाती है, वैसे ही मराठी मीडियम स्कूलों में हिंदी को शामिल करना चाहिए। उन्होंने इसे एकता का प्रतीक बताया और कहा कि भाषा के नाम पर विभाजन ठीक नहीं है। मराठी मीडियम स्कूलों में हिंदी को वैकल्पिक विषय के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए, ताकि दोनों भाषाओं का सम्मान हो।