पारिवारिक अदालत ने पति की याचिका को स्वीकार कर तलाक मंजूर कर लिया था, लेकिन पत्नी ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। साथ ही, उसने यह भी अपील की थी कि पति को उसे एक लाख रुपये प्रति माह गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया जाए।
याचिकाकर्ता महिला ने दावा किया कि उसके ससुराल वालों ने उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया, लेकिन वह अब भी अपने पति से प्यार करती है और वैवाहिक संबंध खत्म नहीं करना चाहती। दूसरी ओर, पति ने अदालत में आरोप लगाया कि पत्नी ने शारीरिक संबंध बनाने से इनकार किया, उस पर अवैध संबंधों का झूठा शक किया और दोस्तों, रिश्तेदारों और कर्मचारियों के सामने उसे अपमानित कर मानसिक पीड़ा पहुंचाई।
पति ने यह भी दावा किया कि पत्नी का उसकी दिव्यांग बहन के प्रति व्यवहार असंवेदनशील और उदासीन रहा, जिससे परिवार को गहरी ठेस पहुंची। इस मामले में जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस नीला गोखले की खंडपीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि पत्नी का यह आचरण पति के प्रति क्रूरता माना जा सकता है और यह तलाक का वैध आधार है।
हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा की पत्नी का रवैया न केवल पति को मानसिक रूप से परेशान करने वाला था, बल्कि उसने सार्वजनिक रूप से उसका अपमान भी किया, जिससे पति की आत्मसम्मान को चोट पहुंची। कोर्ट ने माना कि पति-पत्नी के रिश्ते में अब कोई सुधार की गुंजाइश नहीं बची है और विवाह पूरी तरह से टूट चुका है। इसलिए अदालत ने महिला की अपील खारिज करते हुए तलाक के पारिवारिक अदालत के निर्णय को बरकरार रखा।