scriptपति को यौन सुख से वंचित रखना भी तलाक का आधार…बॉम्बे हाईकोर्ट ने खारिज की पत्नी की याचिका | Depriving husband of sexual pleasure is also ground for divorce Bombay High Court rejects wife petition | Patrika News
मुंबई

पति को यौन सुख से वंचित रखना भी तलाक का आधार…बॉम्बे हाईकोर्ट ने खारिज की पत्नी की याचिका

जोड़े की शादी 2013 में हुई थी, लेकिन दिसंबर 2014 में वे अलग रहने लगे। 2015 में पति ने क्रूरता के आधार पर तलाक की मांग करते हुए पारिवारिक अदालत का दरवाजा खटखटाया और तलाक की मंजूरी मिल गई।

मुंबईJul 25, 2025 / 07:13 pm

Dinesh Dubey

Maharashtra Couple crime

प्रतीकात्मक फोटो

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में एक महिला की तलाक के खिलाफ याचिका खारिज कर दी है। यह मामला एक दंपति से जुड़ा है, जिनकी शादी वर्ष 2013 में हुई थी लेकिन वे केवल एक साल के भीतर दिसंबर 2014 से अलग रहने लगे थे। जिसके बाद 2015 में पति ने पुणे की पारिवारिक अदालत में तलाक की अर्जी दाखिल की थी, जिसमें पत्नी द्वारा की गई क्रूरता को आधार बनाया गया था।

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पारिवारिक अदालत ने पति की याचिका को स्वीकार कर तलाक मंजूर कर लिया था, लेकिन पत्नी ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। साथ ही, उसने यह भी अपील की थी कि पति को उसे एक लाख रुपये प्रति माह गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया जाए।
याचिकाकर्ता महिला ने दावा किया कि उसके ससुराल वालों ने उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया, लेकिन वह अब भी अपने पति से प्यार करती है और वैवाहिक संबंध खत्म नहीं करना चाहती। दूसरी ओर, पति ने अदालत में आरोप लगाया कि पत्नी ने शारीरिक संबंध बनाने से इनकार किया, उस पर अवैध संबंधों का झूठा शक किया और दोस्तों, रिश्तेदारों और कर्मचारियों के सामने उसे अपमानित कर मानसिक पीड़ा पहुंचाई।
पति ने यह भी दावा किया कि पत्नी का उसकी दिव्यांग बहन के प्रति व्यवहार असंवेदनशील और उदासीन रहा, जिससे परिवार को गहरी ठेस पहुंची।

इस मामले में जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस नीला गोखले की खंडपीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि पत्नी का यह आचरण पति के प्रति क्रूरता माना जा सकता है और यह तलाक का वैध आधार है।
हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा की पत्नी का रवैया न केवल पति को मानसिक रूप से परेशान करने वाला था, बल्कि उसने सार्वजनिक रूप से उसका अपमान भी किया, जिससे पति की आत्मसम्मान को चोट पहुंची। कोर्ट ने माना कि पति-पत्नी के रिश्ते में अब कोई सुधार की गुंजाइश नहीं बची है और विवाह पूरी तरह से टूट चुका है। इसलिए अदालत ने महिला की अपील खारिज करते हुए तलाक के पारिवारिक अदालत के निर्णय को बरकरार रखा।

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