मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद नहीं हुआ नामांतरण
पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद सपा नेताओं ने कोठी नंबर-04 के नामांतरण को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई। यह भवन समाजवादी पार्टी को किराए पर आवंटित किया गया था, लेकिन नामांतरण की प्रक्रिया कभी पूरी नहीं की गई। समय रहते यह प्रक्रिया पूरी कर ली जाती, तो पार्टी को आज नोटिस का सामना नहीं करना पड़ता।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा
चक्कर की मिलक स्थित यह कोठी शहर के पॉश इलाकों में से एक मानी जाती है। लंबे समय से इसे सपा कार्यालय के रूप में उपयोग में लाया जा रहा था। अब जब प्रशासन ने इसे खाली कराने का नोटिस जारी किया, तो राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई है। विपक्ष इसे सत्ता पक्ष की रणनीति के रूप में देख रहा है, वहीं प्रशासन इसे पूरी तरह कानूनी और तकनीकी कार्रवाई बता रहा है।
कोठी की स्थिति और सपा द्वारा कराए गए निर्माण कार्य
सपा के कब्जे में आने से पहले यह कोठी बिजली विभाग के अधिकारियों के उपयोग में थी। उस समय इसकी हालत बेहद खराब थी। जिला पंचायत अध्यक्ष रहीं कुसुमलता यादव ने इस कोठी की चाहरदीवारी, मंच, शौचालय और छत की मरम्मत जैसे कार्यों के लिए लाखों रुपये खर्च किए, लेकिन इन निर्माण कार्यों के लिए कोई प्रशासनिक या तकनीकी स्वीकृति नहीं ली गई थी। यह भी नियमों का उल्लंघन माना जा रहा है।
किराया जमा न करने का मामला भी आया सामने
सूत्रों के अनुसार, वर्ष 2024 में तत्कालीन सपा जिलाध्यक्ष स्वर्गीय डीपी यादव ने पूरे वर्ष का किराया जमा किया था। लेकिन उसके बाद से किराया जमा नहीं हुआ है। वर्तमान में कोठी का किराया 900 रुपये प्रतिमाह निर्धारित है। एक साल से किराया न देने के कारण नगर आयुक्त ने शासन को सिफारिश भेजी कि इस संपत्ति को किसी राजनीतिक दल को न देकर शासकीय प्रयोजन में लिया जाए।
नगर आयुक्त और मंडलायुक्त ने भेजा शासन को पत्र
नगर आयुक्त ने 27 मार्च 2025 को शासन को पत्र भेजकर स्पष्ट किया था कि 1994 का आवंटन आदेश अब अप्रासंगिक हो गया है। उन्होंने इस आदेश को निरस्त कर संपत्ति को शासकीय प्रयोजन में लेने की सिफारिश की। इसके बाद मंडलायुक्त ने 28 मार्च को शासन को पत्र लिखकर दिशा-निर्देश मांगे। जब कोई जवाब नहीं आया, तो 23 जुलाई 2025 को रिमाइंडर भी भेजा गया। प्रमुख सचिव नगर विकास ने मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए स्वयं हस्तक्षेप कर कार्रवाई शुरू कर दी है।
नामांतरण की प्रक्रिया कैसे होनी थी?
किरायेदार का स्पष्ट विवरण: संपत्ति किसके नाम पर आवंटित की गई है, यह रिकॉर्ड में होना चाहिए। आवेदन की आवश्यकता: यदि कोई नया व्यक्ति या संस्था संपत्ति का उपयोग कर रही है, तो उसे नामांतरण के लिए आवेदन देना अनिवार्य है। स्वीकृति प्रक्रिया: संबंधित विभाग संपत्ति की स्थिति, भुगतान रिकॉर्ड और उपयोग का आकलन कर स्वीकृति देता है। समाजवादी पार्टी द्वारा यह सभी प्रक्रियाएं समय रहते नहीं पूरी की गईं, जिसका नतीजा अब नोटिस के रूप में सामने आया है।
राजनीतिक दृष्टिकोण बनाम प्रशासनिक कार्रवाई
हालांकि इस कार्रवाई को लेकर राजनीतिक बयानबाज़ी शुरू हो गई है, लेकिन तकनीकी दृष्टि से यह एक वैधानिक प्रक्रिया है। किराया जमा न करना, नियमों की अनदेखी और नामांतरण में लापरवाही, सपा के लिए संकट का कारण बन गए हैं। यदि पार्टी ने नियमों का पालन किया होता, तो प्रशासन को कार्रवाई की आवश्यकता नहीं पड़ती। अब देखना यह है कि सपा इस पर क्या रुख अपनाती है और क्या कानूनी या राजनीतिक प्रतिक्रिया सामने आती है।