मांस और शराब दोनों ही आपत्तिजनक
डॉ. हसन ने सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार ने धार्मिक भावनाओं का हवाला देते हुए मांस की दुकानों को बंद करवा दिया, लेकिन शराब की दुकानों को खुला रखा गया। उन्होंने कहा, “जितना गुनहगार मांस है, उतनी ही गुनहगार शराब भी है। अगर मांस से धार्मिक भावनाएं आहत हो सकती हैं, तो शराब से क्यों नहीं?”
राजस्व के लालच में सरकार
पूर्व सांसद ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह शराब से मिलने वाले राजस्व के कारण शराब की दुकानों को बंद करने से बच रही है। उन्होंने कहा कि पहले शराब और मांस दोनों की बिक्री पर प्रतिबंध था, लेकिन अब शराब की दुकानों को केवल ढकने का आदेश दिया गया है, जिससे बिक्री निर्बाध जारी है। जबकि मांस बेचने वालों की आजीविका पर सीधा असर पड़ा है।
धार्मिक भावनाओं का हो सम्मान
डॉ. हसन ने कहा कि हिंदू समाज में सावन महीने में शराब पीना अनुचित माना जाता है और इससे पूजा-पाठ की पवित्रता भंग होती है। उन्होंने मांग की कि अगर सरकार सच में धार्मिक भावनाओं का सम्मान करती है, तो शराब की बिक्री पर भी सख्ती होनी चाहिए।
समानता और न्याय की हो नीति
एस. टी. हसन ने सरकार से स्पष्ट मांग की कि या तो कांवड़ मार्ग पर शराब और मांस दोनों की बिक्री पूरी तरह से बंद की जाए, या फिर दोनों को ही पर्दे के पीछे बेचने की अनुमति दी जाए। उन्होंने कहा, “क्या सरकार को सारा राजस्व केवल शराब से ही मिलता है? धर्म की शुद्धता को राजस्व के लिए नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।”
बड़ा सवाल: क्या सरकार लगाएगी रोक?
डॉ. हसन की इस टिप्पणी ने सावन में जारी सरकारी नीतियों पर एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना यह होगा कि योगी सरकार इस मांग पर क्या रुख अपनाती है और क्या कांवड़ मार्ग पर शराब की बिक्री पर रोक लगाई जाती है।