लोकतंत्र में युवाओं की भागीदारी या सिर्फ प्रतीकात्मक उपस्थिति?
जयंत चौधरी की बात केवल तर्क तक सीमित नहीं है, यह भारतीय लोकतंत्र की संरचना, संविधान और युवाओं की भागीदारी को लेकर बुनियादी सवाल खड़े करती है। आंकड़े बताते हैं कि भारत, जो दुनिया की सबसे युवा आबादी वाला देश माना जाता है, उसकी संसद सबसे बुजुर्गों में शुमार होती जा रही है।
Association for Democratic Reforms (ADR) के अनुसार
2024 की 18वीं लोकसभा के 280 सांसद, यानी आधे से अधिक, 55 वर्ष से ऊपर की उम्र के हैं। वर्तमान लोकसभा में सबसे उम्रदराज सांसद हैं DMK के टी.आर. बालू, जो 82 वर्ष के हैं और तमिलनाडु के श्रीपेरुंबदूर से चुने गए हैं। उनके बाद समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद (79 वर्ष, फैजाबाद) और जीतन राम मांझी (78 वर्ष, गया) हैं।प्रिय सरोज (25 वर्ष, मछलीशहर, सपा)
पुष्पेंद्र सरोज (25 वर्ष, कौशांबी, सपा)
शंभवी (25 वर्ष, समस्तीपुर, लोक जनशक्ति पार्टी–रामविलास)

इतिहास में चुनावी उम्र को लेकर कब-कब उठी मांग?
1970 का दशक: इंदिरा गांधी के दौर में युवाओं की भागीदारी की बातें तो हुईं, लेकिन न्यूनतम उम्र नहीं बदली।1989 में 61वां संविधान संशोधन: वोट डालने की उम्र 21 से घटाकर 18 कर दी गई, लेकिन प्रतिनिधित्व की उम्र जस की तस रही।
2010 और 2014: कुछ सांसदों ने प्राइवेट मेंबर बिल लाकर उम्र घटाने की मांग की, पर इन्हें कोई सफलता नहीं मिली।

भारतीय संविधान और जनप्रतिनिधित्व कानून (Representation of the People Act, 1951) के अनुसार:
- लोकसभा/विधानसभा चुनाव: न्यूनतम आयु 25 वर्ष
- राज्यसभा/विधान परिषद: न्यूनतम आयु 30 वर्ष
- वोट डालने की उम्र: 18 वर्ष (61वां संविधान संशोधन, 1989)
- ड्राइविंग लाइसेंस: 18 वर्ष
- शादी की कानूनी उम्र (पुरुष): 21 वर्ष
- सरकारी नौकरी की न्यूनतम उम्र: 18-21 वर्ष (पद अनुसार)
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यानी एक व्यक्ति जो समाज का हिस्सा बनने की लगभग हर जिम्मेदारी निभा सकता है, वही व्यक्ति तब तक जनता का प्रतिनिधि नहीं बन सकता जब तक वह 25 या 30 वर्ष का न हो जाए।(Source- ADR Report)