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लखनऊ

सबसे तेज सुपर सोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस कब बनी? सेना में कब किया गया शामिल, पहली बार युद्ध में प्रयोग…?

ब्रह्मोस दुनिया की सबसे ताकतवर मिसाइलों में से एक है। ब्रह्मोस मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण 12 जून 2001 को किया गया था। 10 मई को आपरेशन सिंदूर के दौरान इसका पहली बार उपयोग किया गया।

लखनऊMay 13, 2025 / 03:54 pm

ओम शर्मा

ब्रह्मोस मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण 12 जून 2001 को किया गया था। परीक्षण के बाद से अबतक इस मिसाइल का संभवत: युद्ध की स्थिति में उपयोग नहीं किया गया था। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान इस मिसाइल का पहली बार उपयोग किया गया। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान ही ब्रह्मोस इंटीग्रेशन और टेस्टिंग फैसिलिटी सेंटर का लखनऊ में उद्घाटन किया गया। यह मिसाइल अब लखनऊ में भी निर्मित होगी।
शनिवार (10 मई) तड़के पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों पर भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा की गई जवाबी सटीक हमलों में ब्रह्मोस के अलावा HAMMER (हाईली एजाइल मॉड्यूलर म्यूनिशन एक्सटेंडेड रेंज) और SCALP (एक हवाई प्रक्षेपित क्रूज़ मिसाइल) का भी इस्तेमाल किया गया था।
Super sonic brahmos Missile

ब्रह्मोस का विकास क्यों और कैसे हुआ?

1980 के दशक से, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के नेतृत्व में भारत का इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (IGMDP) अग्नि श्रृंखला की परमाणु सक्षम बैलिस्टिक मिसाइलों के विकास में लगा हुआ था। इस कार्यक्रम ने आकाश (सतह से हवा में मार करने वाली), पृथ्वी (सतह से सतह पर मार करने वाली) और नाग (एंटी टैंक) जैसी मिसाइलें विकसित कीं।
1990 के दशक में भारतीय नीति-निर्माताओं ने महसूस किया कि सशस्त्र बलों को क्रूज़ मिसाइलों से लैस करना जरूरी है- यह वो मिसाइलें होती हैं जो अपनी उड़ान का अधिकांश भाग एक समान गति से तय कर उच्च सटीकता से लक्ष्य पर वार करती हैं। इनकी जरूरत 1991 के खाड़ी युद्ध में इनका प्रभाव देखने के बाद और स्पष्ट हुई।
इसके बाद रूस से बातचीत के बाद फरवरी 1998 में डॉ. कलाम (तब DRDO प्रमुख) और रूस के उप रक्षा मंत्री एन वी मिखाइलोव के बीच मास्को में एक अंतर-सरकारी समझौता हुआ। इसके तहत ब्रह्मोस एयरोस्पेस की स्थापना हुई. जो DRDO और रूस की एनपीओ माशिनोस्त्रोयेनीय (NPOM) के बीच एक संयुक्त उद्यम है। ‘ब्रह्मोस’ नाम ब्रह्मपुत्र और मोस्कवा नदियों के नामों का संक्षिप्त रूप है। इस संयुक्त उद्यम में भारत की हिस्सेदारी 50.5% और रूस की 49.5% है। इसका पहला सफल परीक्षण 12 जून 2001 को ओडिशा के चांदीपुर स्थित परीक्षण रेंज में किया गया।

ध्वनि से तीन गुना तेज है इसकी गति

ब्रह्मोस दो चरणों वाली मिसाइल है, जिसमें पहला चरण ठोस प्रणोदक बूस्टर है जो मिसाइल को सुपरसोनिक गति पर ले जाता है। इसके बाद यह अलग हो जाता है और तरल रैमजेट इंजन सक्रिय होकर मिसाइल को ध्वनि की गति से तीन गुना तेज़ गति पर पहुंचाता है।
Super sonic brahmos Missile

फायर एंड फारगेट सिद्धांत पर करती है काम

यह ‘फायर एंड फॉरगेट’ श्रेणी की मिसाइल है, जिसे दागने के बाद किसी अतिरिक्त मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं होती। इसकी डिज़ाइन कॉम्पैक्ट है और इसमें विशेष सामग्रियों का उपयोग हुआ है, जिससे इसकी रडार पर पकड़ बेहद मुश्किल होती है। यह 15 किमी की क्रूज़ ऊंचाई और 10 मीटर की टर्मिनल ऊंचाई पर लक्ष्य भेद सकती है। यह एक ‘स्टैंड-ऑफ रेंज वेपन’ है- यानी इतनी दूरी से दागा जाता है कि दुश्मन की जवाबी कार्रवाई से बचा जा सके।

ब्रह्मोस के हैं कई वैरिएंट

नौसेना वैरिएंट : 2005 में ब्रह्मोस को नौसेना में शामिल किया गया। यह युद्धपोतों से खड़ा या झुकाव में दागा जा सकता है। एक साथ 8 मिसाइलों का साल्वो फायर किया जा सकता है, जिससे एक समूह को पूरी तरह नष्ट किया जा सकता है। INS राजपूत पहला जहाज था जिस पर ब्रह्मोस को तैनात किया।
थलसेना वैरिएंट : 2007 में इसे थल सेना में शामिल किया गया। इसमें 4 से 6 मोबाइल लॉन्चर होते हैं, हर एक पर तीन मिसाइलें होती हैं। यह 2.8 मैक की गति से 400 किमी दूर तक के लक्ष्य को भेद सकता है। ब्लॉक-I, II और III संस्करणों को तैनात किया गया है, जिनमें पहाड़ी युद्ध क्षमता भी शामिल है।
Super sonic brahmos Missile
वायुसेना वैरिएंट : यह मिसाइल भारत के फ्रंटलाइन लड़ाकू विमान सुखोई-30 MKI पर तैनात की गई है। 2017 में पहली बार सफल परीक्षण हुआ। यह दिन या रात, किसी भी मौसम में, ज़मीन या समुद्री लक्ष्य को दूर से भेद सकती है। ब्रह्मोस से लैस सुखोई-30 की मारक क्षमता 1500 किमी तक है।
पनडुब्बी वैरिएंट : यह संस्करण पानी के नीचे 50 मीटर की गहराई से दागा जा सकता है। मार्च 2013 में इसका परीक्षण विशाखापत्तनम के तट से किया गया।

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भविष्य का ब्रह्मोस-NG

यह अगली पीढ़ी की हल्की और स्टेल्थ युक्त मिसाइल होगी, जो वायु और नौसेना प्लेटफॉर्म के लिए बनाई जा रही है। यह टॉरपीडो ट्यूब से भी दागी जा सकेगी।
(SOURCE- The Indian Express)

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