धार्मिक कट्टरता के आड़ में डिजिटल जाल
वाराणसी की तंग गलियों में रहने वाला तुफैल बाहर से एक पीवीसी कारीगर नजर आता था, लेकिन अंदर ही अंदर वह पाकिस्तान के प्रतिबंधित आतंकी संगठन तहरीक-ए-लब्बैक से जुड़ा हुआ था। एटीएस की रिपोर्ट के मुताबिक, वह “गजवा-ए-हिंद” जैसे भड़काऊ संदेश सोशल मीडिया पर फैलाता और संवेदनशील स्थलों की तस्वीरें पाकिस्तान भेजता था। उसके मोबाइल से 600 से ज्यादा पाकिस्तानी नंबरों से बातचीत के रिकॉर्ड मिले हैं। जांच में सामने आया कि वह ‘नफीसा’ नाम की एक महिला के हनीट्रैप का शिकार हुआ, जिसका पति पाकिस्तानी सेना में है।
डिजिटल टूल से निगरानी और नेटवर्क का पर्दाफाश
तुफैल के Facebook, WhatsApp और अन्य ऐप्स से मिली जानकारियां इशारा करती हैं कि पाकिस्तान अब सीधे धार्मिक आयोजनों, उर्स, जलसे और सोशल मीडिया को अपने एजेंट्स के लिए इस्तेमाल कर रहा है। उसके साथ दिल्ली से मोहम्मद हारून की गिरफ्तारी भी हुई है, जो पाक उच्चायोग से संपर्क में था। दोनों को एनआईए कोर्ट ने 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा है और एटीएस अब उनसे गहरी पूछताछ की तैयारी में है।
नेपाल बॉर्डर से लेकर यूपी के हर जिले तक बढ़ी निगरानी
इन घटनाओं के बाद प्रदेशभर में अलर्ट जारी कर दिया गया है। नेपाल बॉर्डर पर सुरक्षा कड़ी कर दी गई है और प्रदेश के हर जिले में विशेष निगरानी टीमें बनाई गई हैं। यूपी पुलिस की साइबर सेल, खुफिया एजेंसियां और लोकल थाने अब धार्मिक आयोजनों की डिजिटल निगरानी भी कर रहे हैं। बड़ा सवाल: क्या यूपी पाकिस्तान की नई डिजिटल जंग का केंद्र बन चुका है?
जानकारों का मानना है कि जब दुश्मन देश की सरहद के बाहर नहीं, भीतर बैठकर देश की जड़ें काटने की कोशिश करे, तो जवाब और भी ज्यादा सख्त होना चाहिए। सिर्फ तुफैल, हारून या नफीसा की गिरफ्तारी ही काफी नहीं, ज़रूरी है इस नेटवर्क की जड़ तक जाना।
भारत की सेना और इंटेलिजेंस एजेंसियां हर मोर्चे पर सतर्क हैं, लेकिन डिजिटल मोर्चे पर आम जनता की जागरूकता भी उतनी ही ज़रूरी है। अब वक्त है जब देश की सुरक्षा सिर्फ सीमा पर नहीं, स्क्रीन के इस पार भी लड़ी जा रही है — और इसमें हर नागरिक की भूमिका अहम है।